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________________ २२० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास . लेकर वि०सं० १९९५ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी महावीर जयन्ती के दिन आपने दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा प्राप्ति के पश्चात् आपने संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाओं का अध्ययन किया तथा न्याय, दर्शन, आगम आदि शास्त्रों के मर्म को जाना। 'चिन्तन कण' के नाम से आपकी एक रचना है। आपके एक शिष्य हुए- श्री सुभद्रमुनिजी। मुनि श्री सुभद्रमुनिजी __ आपका जन्म दिनाङ्क १२ अगस्त १९५१ को रोहतक के रिढ़ाना ग्राम में हुआ। आपके पिता श्री रामस्वरूपजी वर्मा और माता श्रीमती महादेवी हैं। दिनाङ्क १६ फरवरी १९६४ को जींद में मुनि श्री रामलालजी की कृपा से मुनि श्री रामकृष्णजी के सान्निध्य में आप दीक्षित हुए । आप द्वारा लिखित पुस्तक 'महाप्राण मुनि मायाराम' है, जो प्रकाशित है। मुनि श्री रणसिंहजी आपका जन्म वि०सं० १९६४ मार्गशीर्ष शुक्ला द्वितीया को बड़ौदा ग्राम (हरियाणा) में हुआ। आपके पिता का नाम चौधरी हेतरामजी व माता का नाम श्रीमती रेशमा देवी था। वि०सं० १९९६ वैशाख शुक्ला सप्तमी को पंजाब के फरीदकोट में आप दीक्षित हुए। आपके दो शिष्य हुए- श्री विजयमुनिजी और श्री सुमतिमुनिजी। मुनि श्री विजयमुनिजी आपका जन्म वि०सं० २००३ भाद्रपद कृष्णा पंचमी को बड़ौदा ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम चौधरी श्री जागरसिंहजी तथा माता का नाम श्रीमती छोटो देवी है। आपकी दीक्षा पंजाब के मूनक में वि०सं० २०२४ में हुई। मुनि श्री सुमतिमुनिजी आपका जन्म कुरुक्षेत्र के कसाण गाँव में हुआ। आपके पिता श्री भलेरामजी और माता श्रीमती फूलवती थीं । दिनांक ५ दिसम्बर १९७३ को आप दीक्षित हुए। इस परम्परा में विद्यमान सन्तों के नाम हैं- श्री शिवचन्द्रजी (संघप्रमुख), श्री सुभद्रमुनिजी, श्री अरुणमुनिजी, श्री रमेशमुनिजी, श्री नरेन्द्रमुनिजी, श्री अमितमुनिजी, श्री हरिमुनिजी और श्री प्रेममुनिजी। मुनि श्री शिवचन्दजी आपका जन्म वि०सं० १९७१ चैत्र कृष्णा नवमी को बड़ौदा (हरियाणा) ग्राम में हुआ । आपके पिता का नाम चौधरी शादीरामजी व माता का नाम श्रीमती साहिब कुंवर था। वि०सं० १९९६ वैशाख शुक्ला सप्तमी को फरीदकोट में आपने मुनि श्री रामजीलालजी से दीक्षा ग्रहण की। वर्तमान में आप संध प्रमुख हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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