SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास जी-ज -जान से सेवा की है । 'समग्र जैन चातुर्मास सूची' के आप सम्प्रेरक भी हैं। वर्धमान महावीर केन्द्र के विकास व आगम प्रकाशन आदि में आपका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वर्तमान में आपके साथ विद्यमान मुनिराजों के नाम हैं- पं० रत्न श्री गौतममुनिजी 'गुणाकर', श्री दर्शनमुनिजी, सेवाभावी श्री संजयमुनिजी। मुनि श्री मिश्रीमलजी 'मुमुक्षु' आपका जन्म वि०सं० १९७६ में धनोप (भीलवाड़ा) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री मोतीलालजी व माता का नाम श्रीमती कृष्णाबाई था। वि०सं० २००२ वैशाख वदि सप्तमी को अजमेर में नानकरामजी के सम्प्रदाय के प्रर्वतक श्री पन्नालालजी के सान्निध्य में आपने दीक्षा ग्रहण की। मुनि श्री चांदमलजी आपका जन्म वि०सं० १९९६ में चकवा (सरवाड़, राज० ) में हुआ। आपके पिता का नाम श्री सौभाग्यमलजी और माता का नाम श्रीमती धापूबाई है। वि० सं० २०१३ फाल्गुन सुदि त्रयोदशी को मुनि श्री कनहैयालालजी 'कमल' के श्री चरणों में आप दीक्षित हुये और मुनि श्री मिश्रीमलजी के शिष्य कहलाये । राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। पं० श्री रोशनमुनिजी आपका जन्म ७ फरवरी १९३६ को दिल्ली के पूठ खुर्द में हुआ। आपके पिता का नाम लाला कँवरसेनजी व माता का नाम श्रीमती पातोदेवी था। २७ जून १०६० को मुनि श्री छगनलालजी के सान्निध्य में आप दीक्षित हुये । हिन्दी, उर्दू, संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजी, गुजराती, राजस्थानी व पंजाबी आदि भाषाओं का आपको अच्छा ज्ञान है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, आन्ध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। मुनि श्री हितेशमुनिजी आपका जन्म वि०सं० २००५ के फाल्गुन में भवानाकलां (मेरठ) में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री चन्दगीराम व माता का नाम श्रीमती फूलदेवी है। वि०सं० २०३९ मार्गशीर्ष वदि पंचमी तदनुसार ५ दिसम्बर १९८२ में मुनि श्री छगनलालजी के सान्निध्य में आप दीक्षित हुये और मुनि श्री रोशनमुनिजी के शिष्य कहलाये। वर्तमान में यह परम्परा श्रमण संघ के एक अंग के रूप में विद्यमान है। Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy