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________________ लोकाशाह और उनकी धर्मक्रान्ति १२१ संकेत किया गया है । ऐसी स्थिति में साधु का अपरिग्रह महाव्रत किस प्रकार टिकेगा? ५. दुर्लभ द्रव्य, सचित्त प्रवाल तथा सचित्त पृथ्वी आदि वस्तुओं को साधु को द्रव्य देकर खरीदने को कहा गया है, यह कहाँ तक उचित है ? ६. नियुक्ति, चूर्णि आदि में तो मिट्टी आदि को लेकर उससे सोना, चाँदी, ताँबा आदि उत्पन्न करने की बात भी कही गयी है, यह कहाँ तक उचित है। ७. चूर्णि आदि में कारण पड़ने पर वृद्ध या रोगी व्यक्ति को रात्रि में भोजन करना, रास्ते पर चलना, संथारा किया हो और भूखा न रह सकता हो तो रात्रि में भोजन करना आदि शास्त्रविरुद्ध बातों का उल्लेख है जबकि आगम में रात्रि भोजन का स्पष्ट निषेध है। अत: यह बात भी विचारणीय है? ८-९. तपस्वी आदि के लिए उष्ण पेय आदि बनवाने का भी चूर्णि आदि में उल्लेख है । क्या इससे साधु को आधाकर्मिक दोष नहीं लगेगा, क्योंकि वहाँ कहा गया है कि ज्ञान साधना और चारित्र के परिपालन के लिए यदि कोई अकल्पनीय वस्तु लेता है तो वह शुद्ध है, किन्तु क्या ऐसा व्यक्ति शुद्ध कहा जा सकता है? विज्ञजन विचार करें। १०. चूर्णि आदि में ज्ञान और चारित्र की साधना के लिए अकल्पनीय वस्तु को लेनेवाले को दोष रहित माना गया है। इस सन्दर्भ में चूर्णि में मुनि विष्णुकुमार आदि का उदाहरण दिया गया है। ११. चूर्णियों में अनेक ऐसे कथानक समाहित हैं जो जिनप्रवचन के विरुद्ध लगते हैं। उनमें यहाँ तक कहा गया है कि जिनशासन के कल्याण के लिए सावध और निरवद्य का कोई विचार नहीं करना चाहिए । विष्णुकुमार की कथा में काबड़ी मन्त्री और ब्राह्मणों के मस्तक छेद तक का उल्लेख है। ऐसे उल्लेख आगम के साथ कैसे संगत हो सकते हैं? अत: चूर्णियाँ प्रमाण रूप स्वीकार नहीं की जा सकती। १२. प्रकरण ग्रन्थों में उच्चाटण आदि करने का अनुमोदन किया गया है, जबकि आगम में स्पष्ट रूप से इसका निषेध किया गया है । किसे सत्य माना जाये? १३. आगम के अन्दर कच्चे फल, कच्चा जल आदि का मुनि के लिए निषेध किया गया है जबकि चूर्णि आदि में इनका समर्थन किया गया है। उसमें पके हुए पत्तों का पान आदि खाना वैध माना गया है । इस पर विचार करना आवश्यक है। १४. 'निशीथ' के प्रथम उद्देशक में ही मुनि के लिए मैथुन सेवन करने का पूर्णतः निषेध किया गया है,जबकि चूर्णि में चौथे व्रत के भी अपवाद बताये गये हैं। १५. साध्वी को चौथे व्रत के अपवाद सेवन करने के सम्बन्ध में बहुत-सी कठिनाई बतायी गयी हैं। यदि चौथे व्रत में अपवाद होता है तो इस प्रकार कि कठिनाई या फजीती क्यों बतायी जाती है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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