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________________ १०६ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास ६५. श्री भावसिंहजी स्वामी (२०५७ से २०६५) ६६. श्री लघुवरसिंहजी स्वामी (२०६५ से २०७५) ६७. श्री यशवंतसिंहजी स्वामी (२०७५ से २०८६) ६८. श्री रूपसिंहजी स्वामी (२०८६ से २१०६) ६९. श्री दामोदरजी स्वामी (२१०६ से २१२६) ७०. श्री धनराजजी स्वामी (२१२६ से २१४८) ७१. श्री चिंतामणिजी स्वामी (२१४८ से २१६३) ७२. श्री खेमकरणजी स्वामी (२१६३ से २१६८) ७३. श्री धर्मसिंहजी स्वामी ७४. श्री नगराजजी स्वामी ७५. श्री जयराजजी स्वामी ७६. श्री लवजीऋषि ७७. श्री सोमजीऋषि इन पट्टावलियों में कौन कितनी प्रामाणिक हैं, ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह निर्णय करना अत्यन्त कठिन है। इनकी सत्यता के पीछे परम्परागत विश्वास के अतिरिक्त हम कुछ नहीं कह सकते हैं। यद्यपि ये सभी पट्टावलियाँ भी परम्परा के आधार पर ही निर्मित हुई हैं इसलिए इन्हें अप्रामाणिक कहकर पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता है। साथ ही यह भी निश्चित है कि उस काल का श्वेताम्बर जैन संघ अनेक भागों में विभक्त था और प्रत्येक भाग या गच्छ की अपनी-अपनी परम्परायें थीं। लोकाशाह की परम्परा और उसके पश्चात् स्थानकवासी परम्परा का विकास भी शून्य से नहीं हुआ है। वह भी इन्हीं परम्पराओं से विकसित हुईं हैं और इस रूप में उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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