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उन्हीं मनीषि आचार्यों की मणिमाला में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण को सुमेरू स्थानीय महत्त्व प्राप्त है। जिन्होंने आवश्यक सूत्र के 'सामायिक' विषयवस्तु पर 'विशेषावश्यकभाष्य' जैसा ग्रन्थ प्रणीत किया। इस भाष्य में उन्होंने उन शंकाओं को समाहित किया जो इन्द्रभूति प्रभृति वैदिक विद्वानों की थी, जिसे गणधरवाद के नाम से जाना जाता है।
प्रस्तुत प्रथम अध्याय में सम्पूर्ण जैन आगम-साहित्य के संक्षिप्त परिचय रेखाओं के साथ गणधरों के मन में निहित शंकाओं का सामान्य परिचय दिया गया है तथा निह्नवों की विरूद्ध प्ररूपणाओं के संदर्भ में स्पष्टतः निर्देश दिया है।
___इस प्रकार यह परिस्पष्ट है कि प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का यह प्रथम अध्याय जिस रूप में मेरे द्वारा आलिखित है वह यथार्थ अर्थ में ऐसा आभासित होता है कि यह प्रथम अध्याय शोध-ग्रन्थ रूपी सूरम्य प्रासाद का स्वर्णमय मंगल-स्वरूप प्रवेशद्वार है।
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