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________________ एकादशम अध्याय उपसंहार जैनधर्म दर्शन के क्षेत्र में प्रमाणभूत साहित्य के रुप में आगम एवं आगमिक व्याख्याओं का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। विशेषावश्यकभाष्य आगमिक व्याख्या साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। आगमिक व्याख्या साहित्य में आगम रूपक लिखी गई नियुक्ति, भाष्य और चूर्णियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। किन्तु इसमें भी विशेषावश्यकभाष्य का महत्त्व इसी दृष्टि से सर्वोपरि है कि जहाँ व्याख्या साहित्य के भाष्य साहित्य का वर्ण्य विषय मुख्यरूप से जैनधर्म का आचार पक्ष रहा है, वहाँ विशेषावश्यकभाष्य मुख्य रूप से दार्शनिक समस्याओं का प्रस्तुतिकरण कर उनके निराकरण का प्रयत्न करता है। विशेषावश्यकभाष्य मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। यह भाष्य आवश्यकसूत्र के सामायिक नामक अध्ययन पर रचित है किन्तु मूलतः यह जैन ज्ञान-मीमांसा को ही अपना प्रतिपाद्य विषय बनाता है। इसके प्रथम विभाग में पंचज्ञानों की विस्तृत चर्चा उपलब्ध होती है, वहीं इसके दूसरे भाग में गणधरवाद और निह्नववाद के माध्यम से आत्मा के अस्तित्व, आत्मा की नित्यता, पुनर्जन्म, कर्म-सिद्धान्त, बन्धन-मोक्ष, स्वर्ग-नरक और पुण्य-पाप आदि विषयों के दार्शनिक पक्ष को गम्भीरता से विश्लेषित किया गया है। प्रस्तुत गवेषणा में मैंने जो विशेषावश्यकभाष्य के गणधरवाद एवं निह्नववाद का चयन किया, उसका कारण यह था कि इन दोनों के माध्यम से जैन दर्शन की दार्शनिक समस्याओं पर अधिक गहराई से विचार किया गया है। इसमें पंचविध ज्ञान पर तो पूर्व में भी अनेक शोध कार्य हुए, परन्तु गणधरवाद व निह्नववाद पर अभी तक कोई भी शोधकार्य नहीं हुआ। इसी तथ्य को दृष्टि में रखकर मैंने प्रस्तुत विषय का चयन किया। ___ प्रस्तुत अध्ययन में मैंने यह देखा कि आत्मा का अस्तित्व, बाह्यार्थ का अस्तित्व, कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, पुण्य-पाप, बन्धन-मुक्ति ऐसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं, जिन पर दार्शनिक दृष्टि से गम्भीर चिन्तन हुआ नहीं, किन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी उनकी प्रासंगिकता पर विचार-विमर्श आवश्यक है। यही कारण है कि मैंने अपने विवेचन में जहाँ 473 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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