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प्रमाण-पत्र
प्रमाणित किया जाता हैं, कि साध्वी श्री विचक्षण श्री जी द्वारा प्रस्तुत "विशेषावश्यक भाष्य के गणधरवाद एंव निववाद की दार्शनिक समस्याएँ एवं समाधान : एक अनुशीलन" विषयक शोध प्रबन्ध मेरे निर्देशन में तैयार किया गया है, मैने उनके शोध कार्य के लेखन को समय-समय पर शाजापुर में एवं उदयपुर जाकर देखा है और उचित संशोधन के लिये निर्देश भी दिये है। मेरी दृष्टि में यह शोधकार्य उनका मौलिक कार्य है और इसे किसी अन्य विश्व विद्यालय में पी.एच.डी. की उपाधि हेतु प्रस्तुत नहीं किया गया हैं।
___ मैं इस शोध प्रबन्ध को जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) लाडनूं की पी.एच.डी. उपाधि हेतु परीक्षणार्थ अग्रसरित करता हूँ।
प्रो. सागरमल जैन संस्थापक, निर्देशक प्राच्य विद्यापीठ,
मध्यप्रदेश
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