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आधा बिछा हुआ बिस्तर जितने प्रदेशों में बिछा हुआ है, उसकी अपेक्षा से 'बिछा हुआ' भी कहा जा सकता है। पर जमालि का मत है कि - पूरा बिस्तर बिना बिछे उसे 'बिछा हुआ' नहीं कहा जा सकता, यह कथन एकान्त व्यवहार नय को मानने से नयाभास है। नयाभास का अवलम्बन लेने से जमालि का मत मिथ्या है।'
भगवतीसूत्र में जो कथन किया है, वह निश्चयनय के अनुसार - जैसे “चलेमाणे चलिए" - कोई आदमी दिल्ली से कलकत्ता चल पड़ा, तब वह जो पहला कदम उठायेगा वह भी कलकत्ता के लिए ही उठाएगा और अन्तिम कदम जितना कलकत्ता में पहुंचाएगा उतना ही पहला कदम भी पहुंचा रहा है। अर्थात् जब से पहला कदम उठाया, तभी से वह कलकत्ता पहुंचने लगा।
जैसे कि कोई पानी गर्म कर रहा है, वह पानी पहली डिग्री पर भाप नहीं बनेगा, बल्कि 100° डिग्री पर बनेगा। लेकिन पहली डिग्री पर भी पानी भाप बनने के करीब पहुंचने लगा क्योंकि सौ वीं डिग्री भी एक डिग्री है और पहली डिग्री भी एक डिग्री है। 99° से 100° तक जो यात्रा करनी पड़ी है वही यात्रा एक से 100° तक करनी पड़ी है। पर 99° डिग्री तक हम सोचते रहते हैं कि पानी अभी भाप नहीं बना।'
'चलेमाणे चलिए' का सिद्धान्त यह है कि - व्यक्ति मोक्ष गया नहीं है, लेकिन जाने की तैयारी कर रहा है तो समझो कि वह गया। प्रत्येक समय के कार्य को नहीं देखने से दीर्घ-क्रियाकालत्व की शंका होती है।
इस बात को एक अन्य दृष्टि से भी स्पष्ट किया जा सकता है कि जमालि की मान्यता थी कि क्रिया निष्पत्ति का काल अनेक समय का होता है, किन्तु यदि हम क्रिया के निष्पत्ति काल को अनेक समय में विभाजित करेंगे तो ऐसी स्थिति में क्रिया का निष्पत्तिकाल वर्तमान के अतिरिक्त भूत और भविष्य में भी मानना पड़ेगा, किन्तु भूत और भविष्य में क्रिया सम्भव होती नहीं, और वर्तमान तो मात्र एक समय का ही होता है, वस्तुतः (Present Continous) का जो व्यवहार अंग्रेजी में होता है वह सैद्धान्तिक दृष्टि से विरोधाभास से युक्त है, वस्तुतः वर्तमानकाल निरन्तर नहीं हो सकता। वर्तमान तो एक समय का ही होता है, अतः वर्तमान के प्रत्येक क्रियाकाल में ही कार्य की निष्पत्ति मानना
'जं जत्थ नभोदेसे, अव्युव्वइ जत्थ-जत्थ समयम्मि।
तं तत्थ तत्थमत्थुयमत्थुवं तं पि तं चेव।। विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2321 ' देवेन्द्रमुनि, भगवतीसूत्र, एक परिशीलन, पृ. 118
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