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________________ दशम अध्याय विभिन्न निह्नवों और उसकी दार्शनिक स्थापनाओं की समीक्षा निह्नव का स्वरुप यह दृष्टिगत है कि किसी भी धर्म के संस्थापक एवं धर्म प्रवर्तक महापुरुष के निर्वाण / देहावसान के पश्चात् उनके संघ अथवा सम्प्रदाय में नेतृत्व के प्रश्न को लेकर बिखराव होना प्रारम्भ हो जाता है, किन्तु कभी-कभी यह बिखराव ऐसे महापुरुषों के जीवनकाल में भी हो जाता है, जिसका मुख्य कारण वैचारिक मतभेद होता है। जैन आगमों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वैचारिक मतभेद की प्रक्रिया भगवान महावीर के जीवनकाल में ही प्रारम्भ हो चुकी थी।' श्रमण महावीर के जीवनकाल में एवं उसके पश्चात् भी उनसे वैचारिक मतभेद रखने वाले व्यक्ति निह्नव कहलाए। - निह्नव जिनका वर्तमान परम्परा के साथ मतभेद हुआ, किन्तु उन्होंने किसी अन्य मत को स्वीकार नहीं किया, जैन शासन में रहकर ही किसी एक विषय का अपलाप करने वाले निह्नव हैं। आध्यात्मिक व्यक्तित्व में विचार भेद नहीं होता, वह आत्म-प्रधान होता है, किन्तु जहाँ संघ और सम्प्रदाय होता है, वहाँ सबका विकास एक समान नहीं होता । निह्नव वे साधु कहलाते हैं जिनका किसी एक विषय को लेकर श्रमण भगवान महावीर द्वारा स्थापित सिद्धान्त में मतभेद हो गया था। ये निहनव दो तरह के थे एक वे जो यथार्थ सिद्धांत को समझकर पुनः संघ में आ गये और दूसरे वे जो संघ से पृथक् हो गये हों, परन्तु जो अलग होकर भी अन्य धर्मी नहीं बने।' श्रमण भगवान महावीर के शासन में सात निह्नव हुए थे, उनमें दो भगवान महावीर के जीवनकाल में और पाँच निर्वाण के बाद हुए । जमालि बहुरतवाद अर्थात् द्रव्य की निष्पति में दीर्घकाल की मान्यता तथा क्रियमाण को कृत नहीं मानते, किन्तु वस्तु के निष्पन्न होने पर ही उसका अस्तित्व स्वीकार करते हैं, - Jain Education International 1 सुरेश सिसोदिया, जैनधर्म के सम्प्रदाय, आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, पृ. 47 साध्वी राजीमति, पर्युषण साधना, आदर्श साहित्य संघ, पृ. 270-282 आवश्यक निर्युक्ति, गाथा 783-784 435 - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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