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________________ 2. दाहिने हाथ से छूए गये पदार्थ को बायें हाथ से स्पर्श करने पर उसकी एकता का खण्डन नहीं होता। एक इन्द्रिय का प्रभाव दूसरी इन्द्रियों पर पड़ा करता है। जैसे वृक्ष पर स्थित आम्रफलों को आंखें देखती हैं पर उसका प्रभाव जीभ पर पड़ता है (मूंह में पानी आने लगता है)। यदि आत्मा इन्द्रियात्मक ही होता, तो मुंह में पानी आना यह किसी प्रकार सिद्ध नहीं कर सकते। पानी आने का कारण यही हो सकता है कि पके आम देखते ही व्यक्ति को पूर्वकाल में आस्वादित आम के स्वाद का स्मरण हो आता है। अतः फलों को देखने वाला तथा उस स्वाद को स्मरण करने वाला एक हो, यह तो ठीक है, किन्तु इन्द्रिय में चैतन्य मानने से इस घटना की सम्पूर्णरूप से व्याख्या नहीं हो सकती। इन्द्रियों को आत्मा मानने पर उनके नष्ट होने पर स्मृति की व्यवस्था नहीं हो सकती। अतः इन्द्रियों को आत्मा मानना नितान्त असिद्ध है। कर्ता तथा कारण की भिन्नता अनुभवसिद्ध है। लेखन का साधन (लेखनी) तथा लेखन का कर्ता (लेखक) दोनों भिन्न-भिन्न हैं। इसी प्रकार अनुभव के कर्ता (आत्मा) तथा अनुभव के साधन (इन्द्रियाँ) की भिन्नता सिद्ध है। मन को आत्मा मानने पर उसमें विद्यमान सुख-दुःख, इच्छा आदि अप्रत्यक्ष होने लगेंगे। आत्मा को शरीररूप भी नहीं मान सकते। इसको हम इस उदाहरण से समझ सकते हैं - नवजात शिशु जन्म से कुछ दिन बाद ही बिछौने पर लेटा हुआ हंसने लगता है, जबकि हंसना प्रसन्नता के कारण होता है, और उसकी इस बाल्यावस्था में हर्षोत्पादक घटना का अभाव होता है। अतः वह जन्मान्तरीय अनुभूत प्रसन्नता की घटनाओं को संस्कारवश स्मरण किया करता है और स्मरण के बल पर वह हँसता है। यह तर्क तभी युक्तिसंगत होगा जब हम आत्मा और शरीर को अलग मानें। क्योंकि अनुभवकर्ता शरीर के नाश होने पर ही यह नया शरीर बालक को प्राप्त हुआ है। बालक की दुग्धपान की प्रवृत्ति भी आत्मा को शरीर रूप मानने पर सिद्ध नहीं हो सकती। मनुष्यों की अवस्था तथा स्वभाव में पार्थक्य पुर्वजन्म में किये गये कर्मों के कारण दृष्टिगोचर होता है। ऐसी अवस्था में पूर्वजन्म में कर्म करने वाले तथा इस जन्म में 202 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001737
Book TitleVishevashyakBhasya ke Gandharwad evam Nihnavavada ki Darshanik Samasyaye evam Samadhan Ek Anushila
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshansree
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages534
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size9 MB
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