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वज्जालग्ग
इसकी संस्कृत - टीका नितान्त अव्यवस्थित है । लेखक ने एकबार 'माणुसे' का अर्थ 'मनुष्यभवे' लिखा है और दूसरी बार 'मनुष्य' । 'अलीकसंगमाशयो' को 'अलोकसंगमाश: ' समझ कर उसकी व्याख्या मनुष्य के विशेषण के रूप में की है, जो व्याकरण- विरुद्ध है । अंग्रेजी अनुवाद यों है
"हे मूढ हृदय, दुर्लभ-जन के संगम की मिथ्या आशा से तुम उसी प्रकार दूर तक ले जाये जाओगे जैसे कोई हरिण मृगतृष्णा द्वारा दूर तक भटकाया जाता है ।"
इस अनुवाद में 'माणुसे' और 'सातम्मि' पद उपेक्षित रह गये हैं । गाथा का अर्थ इस प्रकार होना चाहिये -
अरे मूढ मन ! मानुष-सुख ( मानुष मनुष्य, सात सुख ) दुर्लभ हो जाने पर तू उसी प्रकार मिथ्या संगमाशा के द्वारा दूर तक भरमाया जायगा जैसे हरिण मृग मरीचिका के द्वारा दूर तक दौड़ाया जाता है ।
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४९६ × ८–बहले तमंधयारे रमियपमुक्काण सासुसुहाणं । समयं चिय अभिडिया दोन्हं पि सरद्दहे हत्था ॥ २१ ॥ बहले तमोऽन्धकारे रमितप्रमुक्तयोः श्वश्रूस्नुषयोः सममेव संगतौ (मिलितौ ) द्वयोरपि (?) हस्तौ - उपलब्ध संस्कृत छाया
संस्कृत टीका के अनुसार गाथा का संस्कृत रूपान्तर इस प्रकार हैबहतमोऽन्धकारे रमित प्रमुक्तयोः श्वाससोष्णयोः । समकालमेवावलम्बिती द्वाभ्यामपि सारद्रहे हस्तौ ॥
जल-पूर्ण जलाशय के रिकाओं का संकेत स्थल निस्तब्धता में रमण एवं
सम्पादक ने टीका के 'श्वाससोष्णयो' और 'सारद्रहे' पदों के आगे प्रश्नचिह्न लगा दिये हैं । अंग्रेजी अनुवाद इस प्रकार है
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"घने अन्धकार के मध्य में सास और बहू — दोनों ने अपने उपपतियों के साथ जलाशय में गुप्तरूप से रमण किया और मुक्त होकर जब तैरती हुई तट की ओर लौटीं तब उनके हाथ संयोग से परस्पर छू गये ( मिल गये ) ।”
मध्य रमण करना अस्वाभाविक व्यापार है । अभिसा जलशून्य जलाशय में हो संभव है । निशीथ की आप्लवन से जलाशय की प्रशान्त जलराशि का विक्षुब्ध
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