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________________ वज्जालग्ग ४६१ यहाँ न तो रूढि है और न प्रयोजन । अतः लक्षणा का आश्रय लेना ठीक नहीं । मुह का काला होना, पक्षियों के पलाश को छोड़ देने का हेतु नहीं है। मूलपाठ के अनुसार मोचन-क्रिया ही मुह काला होने का हेतु है। शब्दार्थ-पलास = १-किंशुक-वृक्ष २-राक्षस ( पलं मांसम् अश्नातीति पलाशः ) पलासा = १-पत्ते २-मास की आशा . सउणेहिमुक्का = १-( स्व + गुण = सगुण ) अपने गुणों के द्वारा छोड़ दिये गये। २-( शकुनैः ) पक्षियों ( चील्ह, कौए आदि ) के द्वारा छोड़ दी गई मधुमास = १ -वसन्त २-मधु और मांस ( मांसादेर्वा, प्रा० व्या० ११२९ से अनुनासिक लोप ) संस्कृत छाया का परिवर्तित रूप यह होगा ---- मुकुलयश्च मुक्तास्तव पलाशाः पलाश स्वगुणैः ( शकुनैः)। येन मधुमाससमये ( मधुमांससमये ) निजवदनं झटिति श्यामलितम् ।। प्रस्तुत गाथा में किसी ऐसे उन्नतिशील स्वामी का वर्णन है जिसने चिरकाल से सेवारत भक्त. सेवकों के गुणों की उपेक्षा कर दी है। ___ अर्थ--हे पलाश, जब तुम मुकुलित हो रहे थे तभी तुम्हारे पत्ते अपने गुणों के द्वारा छोड़ दिये गये ( अर्थात् पतझड़ से उत्पन्न होने वाली विवर्णता के कारण गुणहीन हो गये ) जिससे वसन्त के दिनों में तुमने अपना मुंह काला कर लिया है । उपर्युक्त अर्थ के साथ शब्दशक्ति के प्रभाव से निम्नलिखित अर्थ भी व्यक्त होता है जिसमें उपेक्षित सेवक के हृदय का अपरिमित आक्रोश प्रतिबिम्बित है-- अरे राक्षस ! जब तुम मोटे हो रहे थे तभी पक्षियों ( चील्हों, कौओं आदि ) ने तुम्हारे मांस की आशा छोड़ दी थो (जो सबसे अवम होता है उसका मांस चील्ह और कौए भी नहीं खाते ), जिससे इस मदिरा' और मांस के समय ( अर्थात् जब उक्त पदार्थों का सेवन किया जाता है ) में तुमने अपना मुंह काला कर लिया ( अर्थात् समाज में मुंह दिखाने योग्य नहीं रह गये )। १. मधु शब्द का अर्थ मदिरा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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