SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२० वज्जालग्ग अर्थों में होने वाले, इस प्रत्यय के व्यापक प्रयोगों को अवधी के निम्नलिखित उदाहरणों से भली-भाँति समझ सकते हैंशील या स्वभाव-रिसिहा (क्रोधी स्वभाव वाला) चौंकहा ( चौंकने के स्वभाव वाला ) लतहा ( लात मारने की आदत वाला) लल्चिहा ( लालची स्वभाव वाला) नैकट्य -घुरहा ( घूर के निकट रहने वाला) निवास -कलकतिहा ( कलकत्ता में रहने वाला या कलकत्ता का निवासी, पुरबहा (पूरब का निवासी ) उतरहा ( उत्तर का निवासी ) प्रवृत्ति -टोटकहा ( जादू-टोने में प्रवृत्ति वाला) टोनहा ( टोना करने वाला) रुचि -गुरहा ( गुड़ में रुचि रखने वाला) भतहा ( भात में रुचि रखने वाला) नैपुण्य -ढोलिहा ( ढोल बजाने में निपुण ) ढेलहा ( ढेला फेंकने वाला ) प्राचुर्य -पनिहा ( जिसमें पानी अधिक है ) कंकरहा ( जिसमें कंकण अधिक है) नोनहा ( जिसमें नमक अधिक है ) पण्य - -कपड़हा ( कपड़ा जिसका विक्रेय या पण्य है ) बरतनहा ( बर्तन जिसका विक्रय या पण्य है ) प्रहरण -लठिहा ( लाठी जिसका प्रहरण या हथियार है ) तरवरिहा ( तलवार जिसका प्रहरण है ) संस्करण-तेलहा ( तेल से संस्कृत या तेल में बनी वस्तु) नियोग -भितरिहा ( भीतर नियुक्त) रक्षण -घटहा ( घाट का रक्षक) तुल्यता -मुरदहा (मुरदे के समान, जैसे मुरदहा बैल ) संसृष्टि - दुधहा ( दूध से संसृष्ट) इस प्रत्यय का दर्शन अर्वाचीन प्राकृत व्याकरणों में नहीं होता । परन्तु इसका मूल संस्कृत में सुरक्षित है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy