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वज्जालग्ग
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६४१*१. आम्रवृक्ष एकमात्र प्रथम मञ्जरी को अंगुली के समान ऊपर उठाकर मानों उद्घोष कर रहा है कि यदि मेरे अतिरिक्त प्रेमियों के दोर्घकालिक वियोग में सन्धि और विग्रह सम्पन्न करने वाला कोई है, तो कहे ।। १ ॥
६४१*२. चञ्च के अग्रभाग से विदलित आम्रमंजरी की रसधारा से जिसका शरीर सिक्त हो चुका था, उस कोर (शुक) के मार्ग के पीछेपोछे सुगन्ध-लुब्ध मधुकर-पुंज मंडरा रहा है ।। २॥
*६४१*३. सत्य हो वसन्त में पलाश विरहियों का मांस खा जाता है और तृत न होने के कारण उसका सर्वांग मानों भूख को ज्वाला से जलता रहता है ।। ३ ।।
६४१*४. सुखियों को सुख और दुःखियों को दुःख देने वाले ये सहजन वसन्त को शोभा के जनक हैं ।। ४ ।।
पाउस-वज्जा ६५२*१. विद्युत्-रूपी भुजंग से युक्त, चपल बलाका-रूपी कपाल से शोभित, घनगर्जन रूपी अट्टहास को प्रकट करने वाले आकाश ने भैरव का रूप धारण कर लिया है ।। १ ।।
* विस्तृत अर्थ परिशिष्ट 'ख' में देखिए ।
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