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________________ वज्जालग्ग ३३७ ६०५*२. कृष्ण के वियोग में तट पर खड़ी होकर वह राधा इतनी रोई थी कि आज भी यमुना में उसके काजल से मैला जल बह रहा हियाली-वज्जा ६२४*१. परिवार के मध्य में (पति के) छींकने पर सुन्दरी तरुणी ने चिरंजीवी हों' यह नहीं कहा, बल्कि अपना चिकुर-भार छोड़ दिया और फिर बाँध लिया। उसका प्रयोजन क्या था ? ॥ १ ॥ (उत्तर--शिर पर जितने बाल हैं, उतने वर्ष जोवित रहो, यह अर्थ प्रकट करने के लिये नायिका ने केशपाश मुक्त कर पुनः बाँध लिया) ६२४*२. जो उच्च कुल में उत्पन्न हुई थी (या जो परिवार का पालन करने वाली थी), पुत्रवती थी, प्रसव कर चुकी थी एवं सुरत-कार्य में तत्पर थी, ऐसी गुणसम्पन्ना पत्नी को पति ने अपने घर में ठौर क्यों नहीं दिया? बताओ ।। २॥ (उत्तर-पति को नन्हें बालक पर दया आ गई। अपने कक्ष में पत्नी को स्थान देने पर संभोग के पश्चात् वह गर्भवती हो जाती) *६२४*३. हे कृशोदरि ! तुम किसके लिए मस्तक पर श्रेष्ठ नगर, कानों पर कर्ण का वध और हाथों पर बन्दरों की संख्या ढो रही हो ? ॥ ३ ॥ __ अन्यार्थ-किसके लिये मस्तक पर चित्रवल्लरो (वर्णकर), कानों में कनफूल और हाथों में अंगद (आभूषण विशेष) धारण करती हो ? (उत्तर-पति के लिये) वसन्त-वज्जा *६३७*१. जैसे लंकानिवासी, रक्ताम्बरधारी, (कुबेर से) पुष्पक यान प्राप्त करने वाले एवं मांसभक्षी रावण ने सीता का हरण किया था, उसी प्रकार शाखाओं के आलय (अर्थात् शाखाओं के आश्रय, शाखायुक्त), (पुष्पों के कारण) लाल वेश धारण करने वाले और पुष्प प्रदान करने वाले पलाश ने शीत (ऋतु) का हरण कर लिया । १. स्याम सुरति करि राधिका, निकसि तरनिजा तीर । अँसुवन करति तिरौंह कौ, तनिक खिरौहैं नीर । -बिहारी * विस्तृत अर्थ परिशिष्ट 'ख' में देखिये। २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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