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________________ वज्जालरंग २६३ ७६५. अरे समुद्र ! पहले तुम्हें राम ने बाँध लिया, अगस्त्य ने पी डाला और बन्दर लाँघ गये। क्यों गरज रहे हो, निर्लज्ज ! लजाते नहीं, क्या कहें ? ॥ ५ ॥ ७६६. अरे विशुद्ध जल की इच्छा वाले पथिक ! मत जाओ, यह समुद्र है । जहाँ तृष्णा निवृत्त होती है, वे सरोवर दूसरे हैं ।। ६ ।। ९१-सुवण्णवज्जा (सुवर्ण-पद्धति) . ७६७. हाय री सखी ! धिक्कार है, जिसके गुणों की परीक्षा निरे पत्थर करते हैं, वह सुवर्ण अग्नि में प्रवेश क्यों न करे ? ॥ १ ॥ ७६८. अग्नि में तपाये जाने पर, पत्थर पर घिसने पर और सोनार के द्वारा काटे जाने पर भी सुवर्ण को वह दुःख नहीं हुआ, जो गुंजा (घुमची) के बराबर तौलने पर हुआ' ॥ २ ॥ ७६९. संसार में दुःख क्यों न हों ? असमय में जरावस्था क्यों न आये ? जबकि साक्षर (विद्वाम्) खड़िया२ उठता है और निरक्षर (मुर्ख) सोनार स्वर्ण-खण्ड तौलता है (पक्ष अक्षरांकित तुलादंड से खली तौली जाती है और अक्षरांकशून्य तुलादंड से सोना तौला जाता है) ।। ३ ॥ ७७०. नाराच (तौलने का काँटा)! तुम निरक्षर हो (मूर्ख हो, तुम्हारे ऊपर अक्षर नहीं अंकित है), लौह युक्त हो (लोभ युक्त हो), दो मुँह वाले हो (दो पलड़ों वाले, चुगली करने वाले), तुम्हें क्या कहें, गुंजा के साथ सुवर्ण को तौलते समय क्यों लज्जित नहीं होते ? ॥ ४ ॥ १. कभी काटा गया कभी छेदा गया, कभी पोट के पत्र बनाया गया। घिस डाला गया कभी पाहन पे, कभी पावक में पिघलाया गया। इतनी बड़ी साधना का, तप का, प्रतिदान यही ठहराया गया । घुमची के बराबर कंचन को, जब एक तुला पे चढ़ाया गया । न वै ताडनात् तापनाद् वह्नि मध्ये न वै विक्रयात् क्लिश्यमनोऽहमस्मि । सुवर्णस्य मे मुख्यदुःखं तदेकं यतो मां जना गुञ्जयातोलयन्ति ।। प्रो० पटवर्धन ने खली का अर्थ ईख किया है। उन्होंने मूल में स्थित खली को खड़ी और खड़ी को खटिका मानकर मराठी शब्द खडी साखर तक पहुंचने का प्रयत्न किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001736
Book TitleVajjalaggam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayvallabh, Vishwanath Pathak
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1984
Total Pages590
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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