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वज्जालग्ग
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५३५. यदि शब्द वाला, (रति एवं पीडन काल में) उचित आकार वाला, विस्तीर्ण, रसयुक्त और भली-भाँति मर्दन (इक्षुपीडन और रतिकाल में उपमर्दन) को सहने वाला-ऐसा यन्त्र (कोल्हू) है तो वह यान्त्रिक (कोल्हू का स्वामी) सुख पाता है ।। ३ ।।
५३६. स्नेह से रस-पूर्ण (आनन्दपूर्ण) यान्त्रिक ने इस प्रकार यन्त्र को आक्रान्त कर लिया (अधिकार में कर लिया) कि पहले ही एक आघात में कुण्डी (बर्तन) भर गई ।। ४ ।।
५३७. पीडक (ईख पेरने वाला) कोल्हू (यन्त्र) वही है, वही पात्र (कुण्डो) है और बहुत से पत्तों की छाया करने वाली वही ईख (इक्षु) है। यह तुम्हारा गुण (विपरीत लक्षणा से दोष) है कि अब भी रस कम हो गया ।। ५॥
५६-मुसलवज्जा (मुसल-पद्धति) प्रतीक परिचय
मुसल = लिंग उदूखल (ओखली) = भग या योनि
काञ्ची (सेम) = लिंग का वलयाकार अग्रभाग *५३८. वे महिलायें धन्य हैं, जिनके घर में चन्दन की लकड़ी से बना हुआ (पक्षान्तर में-चन्दनलिप्त), सुदृढ सेम से युक्त, दीर्घ एवं सुन्दर परिमाण (नाप) वाला मुसल स्वाधीन (वश में) रहता है ।। १ ॥
*५३९. वे महिलायें धन्य हैं, जिनके अपने घर में मोटे और लम्बे (या थोड़े वजन वाले) सुन्दर सेम (मसल के अग्रभाग में लगा लौह-वलय) से युक्त और ओखली के अनुरूप मुसल रहते हैं ॥ २॥ __ ५४०. जिनके मुँह (अग्नभाग) खूब भारी भी हैं और जो अच्छे प्रकार सुदृढ़ सेमों से बँधे भी हैं, वे मुसल भी दूसरों के द्वारा पुरानी ओखली में तोड़ डाले जाते हैं ।। ३ ॥
* विशेष विवरण परिशिष्ट 'ख' में द्रष्टव्य ।
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