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भूमिका प्राकृत सुभाषित ग्रन्थों में वज्जालग्ग का अप्रतिम स्थान है । यद्यपि उसे गाहा सत्तसई के समान प्रसिद्धि नहीं प्राप्त हो सकी तथापि उसकी गाथायें किसी भी साहित्य को गौरवान्वित करने में समर्थ हैं । ईसा की प्रथम शताब्दी में हाल ने सामयिक एवं प्राचीन कवियों की उत्कृष्ट मुक्तक रचनाओं को सत्तसई में संकलित कर उन्हें जीवित रखने का जैसा स्तुत्य प्रयास किया था वैसा ही प्रयास आगे चल कर जैन मुनि जयवल्लभ ने भी किया है। यदि ये दोनों संग्रह अन्य न होते तो आज हम कितने महार्ह काव्य रत्नों से वंचित रहते और भारती के कंठहार की कई लड़ियां अधूरी होती। गाहा सत्तसई का महत्त्व सर्वविदित है । वह मुक्तक काव्यों का प्राचीनतम संग्रह है । वज्जालग्ग भी मुक्तक काव्यों का संग्रह है और सत्तसई की अपेक्षा पर्याप्त अर्वाचीन है, फिर भी उसका ऐतिहासिक एवं साहित्यिक महत्त्व कम नहीं है। इसमें सत्तसई के अनन्तर रचित मुक्तकों के वे सुन्दर परन्तु उदास मुखड़े दिखाई देते हैं, जिनके अभागे कवियों के नाम भी हम नहीं जानते । काव्य की कितनी ही भंगिमायें और प्रौढोक्तियाँ वज्जालग्ग में जीवित हैं। उनमें कुछ सत्तसई काल में प्रचलित रही होंगी, परन्तु हाल ने जिन्हें अपने संकलन में स्थान नहीं दिया था और कुछ पश्चात् विकसित हुई होंगी, जिनका प्रभाव उत्तरवर्ती हिन्दी साहित्य पर भी पड़ा है। यह ग्रन्थ भाषा के कितने नतन प्रयोगों, अप्रस्तुत योजना की कितनी नई प्रवृत्तियों और विभिन्न रसों की अक्षय निधि सँजोये दीर्घ काल तक उपेक्षित पड़ा रहा, इसका कोई व्यवस्थित एवं सर्वांग पूर्ण संस्करण कहीं भी उपलब्ध नहीं था । प्राकृत ग्रन्थ परिषद् ने अंग्रेजी अनुवाद के साथ इस अमूल्य ग्रन्थ का प्रकाशन कर साहित्य-जगत् का बहुत बड़ा उपकार किया है । यदि उक्त संस्करण उपलब्ध नहीं होता तो कदाचित् मुझे वज्जालग्ग पर कुछ लिखने का अवसर ही न मिलता। वज्जालग्ग का अर्थ
ग्रन्थकार के शब्दों में वज्जालग्ग विभिन्न पद्यों के समूहों का ऐसा संग्रह है जिसके प्रत्येक समूह का एक-एक पृथक् विषय (शीर्षक) होता है, वज्जा का अर्थ पद्धति है
एकत्थे पत्थावे जत्थ पढिज्जति पउर गाहाओ।
तं खलु वज्जालग्गं वज्ज त्ति पद्धई भणिया ।। वज्जा शब्द संस्कृत व्रज्या का प्राकृत रूप है। प्राचीन संस्कृत में उसका अर्थ भले ही गमन या मार्ग रहा हो कालान्तर में वह वर्ग (समूह) के अर्थ में प्रचलित
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