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हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.४ लवरामचन्द्रे' (हेम. २.७९), ऐसा कोई कहते हैं। किंतु वह (कहना) अयोग्य है। (उसका कारण)-चंदो, चन्द्रो ऐसे उदाहरण उन्होंने स्वयंही दिए हैं; और उसी तरहके प्रयोग (वाङ्मयमेंभी) दिखाई देते हैं। इसलिए अगले सूत्रमें (१.४.८०) कहा गया विकल्पका स्वीकार करना चाहिए ॥ ७९ ॥ धात्रीद्रे रस्तु ॥ ८०॥
धात्री शब्दमें और द्र शब्दमें रेफ का लोप विकल्पसे होता है। उदा.-धात्री धत्ती धारी। र् का लोप होनेसे पहले (होनेवाले धत्ती) इस -हस्व (रूप) से धाई शब्द (सिद्ध हुआ है।) द्र (में विकल्पसे)-चन्दो चन्द्रो। मन्दो मन्द्रो । रुद्दो रुद्रो। भदं भद्रं । समुद्दो समुद्रो । 'ह्नदे दहयोः' (१.४.११५) सूत्रानुसार, ह्रद शब्दमें द् और ह् इनकी स्थिति-परिवृत्ति होकर, द्रह रूप सिद्ध होता है; और वहीं दहो (ऐसा भी रूप हो जाता है।) कुछ लोगोंके मतानुसार, द्र में र् का लोप नहीं होता। द्रह शब्द संस्कृतमेंभी है, ऐसा कोई कहते हैं । तरुण पुरुष, इत्यादि अर्थमें होनेवाले वोद्रह, इत्यादि शब्द नित्य रेफसे संयुक्त हैं और वे देशीही होते हैं । उदा.सिक्खन्तु वोद्रहीओ। वोद्रहद्रह म्मि पडिआ। शिक्षन्तु तरुण्यः । (युवतियोंको सीखने दो।) तरुणहदे पतिता (तारुण्यरूप तालाबमें गिर गई) ।। ८० ॥ हस्य मध्याह्ने ।। ८१ ॥
मध्याहन शब्दमें ह का लोप विकल्पसे होता है। उदा.-मज्झण्णो मज्झण्हो ॥ ८१ ॥ ज्ञो जोऽविज्ञाने ।। ८२ ।।
ज्ञकारसे संबंधित रहनेवाले अकारका लोप विकल्पसे होता है; किन्तु अविज्ञाने यानी विज्ञान शब्दमें (ऐसा लोप) नहीं होता । उदा. ज्ञानम् जाणं णाणं। सर्वज्ञः सव्वज्जो सव्वण्णो। आत्मज्ञः अप्पज्जो अप्पण्णो।
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