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हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा. ४ तो ढो रश्चारब्धे तु ॥ ७३ ।।
आरब्ध शब्दमें स्तु का यानी संयुक्त म्यंजनका तकार विकल्पसे होता है और उसके सानिध्यसे र का ढ हो जाता है। उदा.-आढत्तो आरो।। ७३ ॥ सो बृहस्पतिवनस्पत्योः ।। ७४ ॥
(बृहस्पति और वनस्पति) इनमें संयुक्त व्यंजनका सकार विकल्पसे होता हैं । उदा.-बहस्सई बहप्फई । बिहस्सई विहप्फई । वणस्सई वणप्फई ॥ ७४॥ शोर्लुक्खोः स्तम्बसमस्तनिःस्पृहपरस्परश्मशानश्मश्रौ ॥ ७५ ॥
स्तम्ब, इत्यादि शब्दोंमें संयुक्त व्यंजनमें खु यानी आद्य स्थानमें रहनेवाले जो शु यानी श, ष् और स् , उनका लोप होता है। उदा.-तम्बो (स्तम्ब)। समत्तो (समस्त)। निपिहो (निस्पृह)। परोप्परं (परस्पर)। मसाणं (श्मशान)। मंसू (श्मश्रू) ।। ७५ ॥ श्चस्य हरिश्चन्द्रे ।। ७६ ।।
हरिश्चन्द्र शब्दमें श्च का लोप होता है । उदा.-हरिअंदो ॥ ७६ ।। कगटडतदपक पशोरुपर्यद्रे ।। ७७ ॥
अद्रे यानी द्र इस संयुक्त व्यंजनको छोडकर, संयुक्त व्यंजनमें पहले स्थानमें रहनेवाले (उपरिस्थित) क्, ग्, टु, ड्, त्, द्, प, जिव्हामूलीय, उपध्मानीय,
और शु (=श, ष् , स्), इनका लोप होता है। उदा.-क (का लोप)-भुक्तम् भुत्तं । सिक्थम् सित्थं । म् (का लोप)-दुग्धम् दुद्धं । मुग्धम् मुद्धाट् (का लोप)षट्पदः छप्पओ। कट्फलम् कप्फलं । ड् (का लोप)-खड्गः खग्गो। षड्जः सज्जो । त् (क। लोप)-उत्पलम् उप्पलं । उत्पातः उप्पाओ। द् (का लोप)मद्गुः मग्गू । मुद्गरः मोग्गरो । उद्विग्नः उब्विग्गो। प् (का लोप)-सुप्तः सुत्तो। गुप्तः गुत्तो। क् (का लेप)-दुःखम् दुक्खं । प (का लोप)-अन्तःपात: अन्तप्पाओ। श (का लोप)-निश्चलः निच्चलो। लक्षणं लण्हं । श्वयोतति चुअइ। ष (का लोप)-गोष्ठी गोट्ठी । षष्ठः छट्ठो। स् (का लोप)-स्खलितः खलिओ। स्नेहः हो । द्र इस संयुक्त व्यंजनको छोडकर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण द्रमें द का लोप नहीं होता।) उदा.-समुद्रो। चन्द्रो। भद्रं । -'धात्रीद्रे
त्रि.प्रा,व्या....६
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