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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.४ कहा है ? (कारण बाष्प शब्द अश्रुवाचक न होनेपर, ह नहीं होता।) उदा.बप्फो (यानी) ऊष्मा ॥ ६१ ॥ कार्षापणे ।। ६२ ।। कार्षापण शब्दमें संयुक्त व्यंजनका ह होता है। उदा.-काहावणो। कहावणो इस रूपमें, 'संयोगे' (१.२.४०) इस सूत्रानुसार पहले प्हस्व हो गया और पीछे आदेश आया; अथवा-कहावणो शब्द कर्षापण शब्दसे साधा गया है ॥ ६२ ॥ न वा तीर्थदुःखदक्षिणदीर्धे ॥ ६३ ॥ (तीर्थ, दुःख, दक्षिण, दीर्घ) इन शब्दों में संयुक्त व्यंजनका ह विकल्पसे नहीं होता। उदा.-तूहं तित्थं । दुहं दुक्ख । दुहिओ दुक्खिओ। दाहिणो दक्खिणो । दीहो दीहरो दिग्धो ॥ ६३ ॥ कूष्माण्ड्यां ण्डश्च तु लः ।। ६४ ।। कूष्माण्डी शब्दमें पहले संयुक्त व्यंजनका हकार होता है। (और) ण्डका ल विकल्पसे होता है । उदा.-कोहली कोहण्डी। कोहली इस रूपमें, 'संयोगे' (१.२.४०) सूत्रानुसार प्रथम -हस्व हो गया और बादमें ल हुआ स्वथ्वद्वध्वां क्वचिच्चछजझाः ।। ६५ ॥ त्व, थ्व, द्व और ध्व इनके यथाक्रम च, छ, ज, झ ऐसे कचित् (वाङ्मयीन) प्रयोगानुसार विकार होते हैं । उदा.-त्व का च-भुक्त्वा भोच्चा। ज्ञात्वा णच्चा । श्रुत्वा सोच्चा । थ्व काछ-पृथ्वी पिच्छी । द्व का ज-विद्वान् विज्ज । ध्व का झ-ध्वनिः झुणी । बुवा बुज्झा | सअलपिच्छीविज्ज, सकलपृथ्वीविद्वान् ॥ १५ ॥ हलो ल्हः ॥ ६६ ॥ हलकारका लकारसे आक्रांत ऐसा हकार (=ल्ह) होता है। उदा.कहलारम् कलरं । प्रहलादः पल्हादो ॥६६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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