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________________ हिन्दी अनुवाद-अ १, पा. २ करीषम् । उवणि उवणीअं उपनीतम् । जिअइ जीअइ जीवति । इत्यादि ॥ ५२ ।। उलू जीर्णे ॥ ५३ ॥ ____ जीर्ण शब्दमें ई का उ होता है । (सूत्रके उल् में) ल् इत् होनेसे, (यहाँ) विकल्प नहीं होता । उदा.-जुण्णं । कचित् (उ) नहीं होता। उदा.जिण्णे भोअणमत्ते, जीर्णे भोजनमात्रे ।। ५३ ॥ तीर्थे झूल ।।५४॥ तीर्थ शब्दमें, (आगे) हि यानी हकार होने पर, ई का ऊ होता है। उदा.-तूहं । ह होनेपर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण आगे ह न हो तो यह वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-तित्थं ॥ ५४ ॥ विहीनहीने वा ॥ ५५ ॥ विहीन और हीन शब्दोंमें ई का ऊ विकल्पसे होता है। उदा.विहूर्ण विहीणं । हुणं हीणं । (विहीन और हीन) इनमेंही, ऐसा क्यों कहा है ! (कारण अन्यत्र ऐसा नहीं होता।) उदा.-पहीणजरमरणा ॥ ५५॥ एल् पीठनीडकीदृशपीयूषविभीतकेशापीडे ॥ ५६ ॥ . पीठ, इत्यादि शब्दोंमें आद्य ई का ए होता है। (सूत्रके एल में) ल् इत् होनेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता। उदा.-पेढं। नेडं । केरिसो। पेऊसं। बहेडओ। एरिसो। आमेलो । बहुलका अधिकार होनेसे, पीठ और नीड शब्दोंमें विकल्प होता है। उदा.-पीढं नीडं ॥ ५६ ।। त्वदुत उपरिगुरुके ॥ ५७ ॥ उपरि और गुरुक शब्दोंमें आद्य उकारका अ विकल्पसे होता है। उदा.-अवरि उवरि । गरुओ गुरुओ। (गुरूक शब्दमें) क-प्रत्यय का ग्रहण होनेसे, गुरु शब्दमें (यह वर्णान्तर) नहीं होता । उदा.-गुरू ।।५७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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