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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.२ शय्यादौ ।। २६ ॥ ___ शय्या इत्यादि शब्दों में आध अ-वर्णका ए होता है । (१.२.२४२५ से) यह नियम पृथक् कहा जानेसे, (यहाँका वर्णान्तर) नित्य होता है। उदा.-सेजा शय्या । एत्य अत्र | गेज्झं ग्राह्यम् । गेंदुअं कन्दुकम् ।।२६॥ त्वाई उदोत् ।। २७ ॥ आई शब्दमें आध अ-वर्णके उ और ओ विकल्पसे होते हैं। उदा.उलं ओल्लं । विकल्पपक्षमें-अल्लं अई। बाहस लिलप्पवहेण ओल्लेइ, बाष्पसलिलप्रवाहेणार्द्रयति ॥ २७॥ स्वपि ॥ २८॥ (इस सूत्रमें १.२.२७ से) उदोत् शब्दकी अनुवृत्ति है। स्वप् (स्वपि) धातुके आध अ-वर्णके उ और ओ होते हैं । (१.२.२७ से) यह नियम पृथक् कहा जानेसे, (यहाँका वर्णान्तर) नित्य होता है। उदा.सुवइ सोवइ ।। २८ ॥ ओदाल्यां पङ्क्तौ ।। २९ ।। पङ्क्ती यानी पंक्तिवाचक आली शब्दमें आद्य अ-वर्णका ओ होत है। उदा.-ओली । पंक्तिवाचक (आली शब्दमें), ऐसा क्यों कहा है ! (कारण आली पंक्तिवाचक न हो तो यह वर्णान्तर नहीं होता।) उदा. आली (यानी) सखी ॥ २९ ॥ 'फोः परस्परनमस्कारे।। ३०॥ (इस सूत्रमें १.२.२९ से) ओत् शब्दकी अनुवृत्ति है। परस्पर और नमस्कार शब्दोंमें फु यानी दितीय (अ-वर्ण) का ओ होता है । उदा.परोप्परं । णमोकारो ।। ३० ॥ पद्म मि ॥ ३१ ॥ पद्म शब्दमें आध अ-वर्णका, मकार आगे होनेपर, ओ होता है। उदा.-पोम्म। (सूत्रमें) मि (मकार आगे होनेपर), ऐसा क्यों कहा है ? (कारण आगे मकार न हो तो यह वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-पदुमं ॥३१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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