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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.२ उलू ध्वनिगवयविष्वचो वः ॥ १६ ॥ ध्वनि, गवय, विष्वक् शब्दोंमें, वकारसे संबंधित (होनेवाले) अवर्णका उत्व लित् (नित्य) होता है । उदा.-झुणी । गउओ। वीसुं ।। १६ ।। ज्ञो णोऽभिज्ञादौ ।। १७ ॥ (इस सूत्रमें) उत्वं पदकी अनुवृत्ति है। अभिज्ञ, इत्यादि शब्दोंमें ज्ञकारको आदेशके रूपमें आनेवाले ण से संबंधित (रहनेवाले) अ-वर्णका उ होता है। उदा.-अहिण्णु अभिज्ञः । सव्वष्णू सर्वज्ञः। आगमष्णू आगमज्ञः । कअण्णू कृतज्ञः । (ज्ञ को) ण (आदेश) होनेपर, ऐसा क्यों कहा है ! (कारण यदि ण आदेश न हो तो यहाँका वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.- अहिजो अभिज्ञः । अभिज्ञः, इत्यादि शब्दोंमें, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण अन्य शब्दोंमें ज्ञ कोण आदेश होनेपरभी अ का उ नहीं होता।) उदा.-पण्णो प्राज्ञः। अहिण्णा अभिज्ञा । जिन शब्दोंमें ज्ञ को ण आदेश होकर, उससे संबंधित (होनेवाले) अ का उ हुआ दिखाई देता है, वे अभिज्ञ, इत्यादि शब्द होते हैं ।। १७ ।। स्तावकसास्ने ।। १८ । ____स्तावक और सास्ना शब्दोंके आद्य अ-वर्ण का उ होता है। उदा.थुवओ। सुण्हा ॥ १८॥ चण्डखण्डिते णा वा ॥ १९॥ चण्ड और खण्डित शब्दोंमें, णकारके साथ आध अवर्णका उ विकल्पसे होता है । उदा.-चुडं चण्डं । खुडिओ खंडिओ ॥ १९॥ प्रथमे प्योः ॥ २० ॥ . प्रथम शब्दमें, पकार और थकार इनसे संबंधित (रहनेवाले) अवर्णका, (दोनोंका) एकसाथ (युगपद् } और क्रमसे, उ विकल्पसे होता है। उदा. पुढुम पढुमं पुढमं पढमं ॥ २० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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