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टिप्पणियाँ २.१.७५ ओअच्छादयः-दृश् धातुके आदेश २.४.१५३ में दिए हैं। उनमें ओअच्छ ऐसा आदेश नहीं दिया है, किंतु अवअच्छ आदेश दिया गया है; अवअच्छसे ओअच्छ रूप सहज रीतिसे सिद्ध हो जाता है ।
२.२ २.२.२ सुप्-विभक्तिप्रत्ययोंकी तांत्रिक संज्ञाओंके लिए १.१.४ ऊपरकी टिप्पणी देखिए।
२२.१५ श्लुग्वा--श् + क् + वा । श् इत् है; क् यानी लोप; वा विकल्प दिखानेके लिए है।
२.२.२९ शानुबन्धो लुक्–श अनुबंध ( इत् ) रखनेवाला लोप । शानुबंधके कार्यके लिए १.१.१५ सूत्र देखिए।
२.२.३० ङानुबन्धो लुक-ङ् अनुबंध रखनेवाला लोप । छ अनुबंध सानुनासिक उच्चार दिखाता है ( देखिए १.१.१६ )।
२.२.३४ आकारान्त स्त्रीलिंगमें होनेवाले शब्दोंके बारेमें ( उदा - माला ) शित आ प्रत्यय न लगनेसे ( देखिए २.२.३६ ), मालाआ ऐसा रूप नहीं होता।
२.२.३७ अजातिवाचिन:-अजातिवाचक शब्द, अवर्गवाचक शब्द । डीप्प्रत्यय-विशिष्ट शब्दोंसे उनका स्त्रीलिंग रूप सिद्ध करनेका डीप् (ई) प्रत्यय है ।
२२.३८ टिड्ढाणञ्-यह पाणिनिका सूत्र है। इसमें छीप् प्रत्यय विहित किया है। टाए-कुछ शब्दोंसे स्त्रीलिंग रूप सिद्ध करनेका टाप् ( आ ) प्रत्यय है।
२.२.४५ टावन्त--टाप् प्रत्ययसे अन्त होनेवाला शब्द ।
२.२.६२ सर्वादेः-सर्वादिका । सर्वादि यानी सर्वनाम ( सर्वादीनि सर्वनामानि ) । सर्वादिगणमें सर्व, अन्य, इतर, यद्, तद्, इत्यादि सर्वनाम होते हैं ।
२.२.८६ रानुबन्धे...... भवति-यह वाक्य थे डेल् (२.२.८६ ) सूत्रका स्पष्टीकरण करता है।
२.३.४२ क्यङन्त-क्य प्रत्ययसे अन्त होनेवाला शब्द । समान आचार दिखानेके लिए संज्ञाओंमें जोडा जानेवाला क्यङ् ( य) प्रत्यय है। उदा - ( काकः ) स्येनायते । क्यषन्त-क्या प्रत्ययसे अन्त होनेवाला शब्द । लोहित, इत्यादि शब्दोंको लगाकर नामधातु सिद्ध करनेका क्यः ( य ) प्रत्यय है । उदा-लोहितायात, लोहितायते ।
२.४.१ लट्-वर्तमानकाल । काल और अर्थकी संज्ञा बतानेके लिए लखे आरंभ होनेवाली दस संज्ञाएँ पाणिनिने प्रयुक्त की हैं, वे इसी प्रकार होती है
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