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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण १.१.१७ अधिकार-जिस पदका / पर्दोका संबंध आगे आनेवाले अनेक सूत्रोंसे जाता है उस पदका / पदोंका निर्देश करनेवाला सूत्र आधिकारसूत्र होता है । अनुवृत्तिसे आधिकारका क्षेत्र अधिक व्यापक होता है। बहुल - इसका स्पष्टीकरण ऐसा दिया जाता है
क्वचित्प्रवृत्तिः क्वचिदप्रवृत्तिः क्वचिद् विभाषा क्वचिदन्यदेव । शिष्टप्रयोगाननु वृत्य लोके विज्ञेयमेतद् बहुलग्रहेषु ॥
१.१.१८ समास-( समसन, संक्षेप ) । अनेक पदों का अर्थकी दृष्टिसे एक पद होना यानी समास । उदा - रामका मंदिर, राममंदिर ।
- ११.१९ पद-विभक्तिप्रत्यय और धातु, लगनेवाले प्रत्ययोंसे अन्त होनेवाला शब्द ( सुप्तिङन्तं पदम् । पा. १.४.१४)।
१.१.२० अनुवर्तते-अनुवृत्ति होती है । अनुवृत्ति यानी एक / अनेक पदों की अनन्नरवति सूत्र / सूत्रोंमें होने वाली आवृत्ति । अनन्तरर्वात सूत्रोंका अर्थ करनेमें यह अनुवृत्ति आवश्यक होता है । इको यणाच- इस पाणिनिके सूत्रका अथ इसप्रकार हैसहिता होनेपर, आगे स्वर हो तो, इक् प्रत्याहार से वर्गों के स्थानपर या प्रत्याहार से वर्ण क्रनसे आते हैं । इक् प्रत्याहारमें इ - ई, उ - ऊ, ऋ - ऋ, ल वर्ग हैं। ण् प्रत्लाहारमें य् व्. र् , ल वर्ण होते हैं। यणादेशः सन्धिः -जिस संधिमें यण आदेश होता है वह । 'इको यणचि' रत्र यणादेश संधि बताता है। आदेश-शब्दमें एक / अनेक वर्गों के स्थानपर अन्य एक / अनेक वर्णोका आना । यत्व वत्व-(इवर्णका) य होना, ( उवर्णका व् होना।
.१.१.२१ एदोतो- एत् + ओत् )- यहाँ ए और ओके आगे तकार लगाया है। जिसके आगे तकार लगाया है अथवा तकारके आगे उच्चारित ऐसा जो वर्ण वह उसका उच्चार करने के लिए उतनाही समय लगनेवाले सवर्ण वर्णोका निर्देश करता है (तपास्तत्कालस्य । पा. १.१.७० )। संक्षेपमें, अत् = अ, इत् = इ, इत्यादि कहा जा सकता है।
१.१.२२ लोप-प्रसंगवशात् उच्चारमें प्राप्त हुए वर्ण, इत्यादिका श्रवण-अभाव (अदर्शन, यानी - (अदर्शनं लोपः । पा. १.१.६०; प्रसक्तस्य अदर्शन लोपसंज्ञं स्यात् )।
१.१२३ तिङ्-धातुमें लगनेवाले प्रत्ययोंका निर्देश करनेवाला तिक् प्रत्याहार है। तिबादि-तिमत्याहारमें तिप् पहला प्रत्यय है (तिप्तमझिसिपथस्थमिब्वस्मस्तातांझथासाथांध्वमिड्वहिमहिङ् । पा. ३.४.७८ में ये प्रत्यय दिये हैं)।
१.१.२५ उपसर्ग-जिन अत्र्ययों का धातुओंसे योग होता है उन्हे उपसर्ग कहते हैं। ये उपसर्ग इसप्रकार -प्रपरापसमन्ववनिरभिव्याधसुदतिनिप्रतिपर्यणयः। उप आमिति विशतिरेष सखे उपसर्गगणः कथितः कविना ।।
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