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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा. १ यत्तत्सम्यग्विष्वक्पृथको मल् ॥ ३८ ॥ यद् , इत्यादि (यद् , तद्, सम्यक्, विष्वक्, पृथक्) अव्ययोंके अन्त्य हल (व्यंजन) का मकार होता है। (सूत्रके मलमें)ल इत् होनेके कारण, (यह मकार ) नित्य होता है। उदा.-यत् जं। तत् तं । सम्यक् सम्मं । विष्वक् वीसुं । पृथक् पिहं ॥ ३८ ॥ मोऽचि वा ॥ ३९॥ (इस सूत्रमें) मः पद (अध्याहृत ) है। अन्त्य मकारका, स्वर आगे हो तो, मकार विकल्पसे होता है। (शब्दोंके अन्त्य व्यंजनका) लोप होता है (१.१.२५) इस नियमका प्रस्तुत नियम अपवाद है। उदा.-उसहमजिअं च वन्दे । वन्दे उसह अजिअं ॥ ३९ ।। विन्दुलू ॥ ४० ॥ शब्दोंके अन्त्य मकारका बिंदु (अनुस्वार) होता है । (सूत्रके बिंदु में) ल इत् होनेसे, ( यह अनुस्वार ) नित्य होता है। उदा.-फलं। वच्छं । सव्वं । गिरिं । वहुं॥ ४० ॥ हलि उनणनाम् ।। ४१ ।। (अब) म शब्दकी निवृत्ति हुई है। ङ, ञ, ण और न इन केआगे हल (व्यंजन) हो तो उनका बिंदु (अनुस्वार) हो जाता है। उदा.-ङ का (अनुस्वार)-पङ्क्तिः पंती । पराङ्मुखः परंमुहो। ञ का (अनुस्वार)कञ्चुकः कंचुओ। लाञ्छनम् लंछणं । ण का (अनुस्वार) षण्मुखः छंमुहो। उत्कण्ठा उक्कंठा । न का (अनुस्वार)-सन्ध्या संझा। विन्ध्यः विझो ॥ ४१॥ स्वरेभ्यो वक्रादौ ॥ ४२ ॥ .. बक, इत्यादि शब्दोंमें, प्रथम, (द्वितीय), इत्यादि स्वरोंके आगे, (वादमयमें जैसा) दिखाई देता है वैसा, बिंदु (अनुस्वार) आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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