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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा. १ शि श्लुङ् नपुनरि तु ॥ २८ ॥ 'नपुनर्' शब्दमें, अन्त्य व्यंजनके शानुबंध इकार और लोप विकल्पसे होते हैं । श इत् होनेसे, पिछला (पूर्व) स्वर दीर्घ होता है। . उदा.-णउणाइ णउणा। विकल्पपक्षमें णउण। पुनर शब्दमेंभी पुणाइ ऐसा (वर्णान्तर) दिखाई देता है ।। २८ ।। अविद्युति स्त्रियामाल ।। २९॥ . स्त्रीलिंगमें रहनेवाले (शब्दोंके) अन्त्य व्यंजनका आ होता है। (सूत्रमेंसे आल. शब्दमें ) ल अनुबंध होनेके कारण, (यह वर्णान्तर) नित्य होता है । अविद्युति यानी विद्युत् शब्दको छोडकर (अन्य स्त्रीलिंगी शब्दोंमें अन्त्य व्यंजनका आकार हो जाता है)। (शब्दोंमें अन्त्य व्यंजनका) लोप होता है ( देखिए :-१.१.२५), इस नियमका प्रस्तुत नियम अपवाद है । उदा.-सरित् सरिआ । प्रतिपद् पडिवआ। संपद् संपआ। बहुल (१.१.१७) का अधिकार होनेके कारण, (इस आ के स्थानपर) ईषत्स्पृष्ट-यश्रुतिभी होती है। उदा.-सरिया। पडिवया । संपया । (सूत्रमें) विद्युत् शब्दको छोडकर, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण विद्युत् शब्दमें अन्त्य व्यंजनका आकार नहीं होता।) उदा.-विज्ज । विज्जुला ।।२९|| रो रा ॥ ३०॥ स्त्रीलिंगमें रहनेवाले (शब्दोंके) अन्त्य रेफ (र) को रा ऐसा आदेश होता है। उदा.-गिर् गिरा । पुर् पुरा । धुर् धुरा ॥ ३० ॥ हः क्षुत्ककुभि ।। ३१ ॥ क्षुध् और ककुभ इन शब्दोंमें अन्त्य व्यंजनका हकार होता है। उदा.-छुहा । कउहा ॥ ३१ ।। धनुषि वा ।। ३२ ॥ (इस सूत्रमें १.१.३१ से) हः पदकी अनुवृत्ति है । धनुस् शब्दमें अन्त्य व्यंजनका ह विकल्पसे होता है। उदा.-धणुहं धणू ।। ३२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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