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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण
व्याघ्रः वक्खो। राजा राचा। जीमूतः चीमतो। जर्जरं चञ्चलं। निझरः निच्छलो। झईरः उच्छलो । तडागम् तटाकं । डमरुकः टमलुको। मण्डलम् मण्टलं | गाढम् कादं । ढक्का ठक्का । षण्डः सण्टो । मदनः मतनो । दामोदरः तामोतलो। मन्दरः मन्तलो। मधुरम् मथुलं । धारा थाला । बान्धवः पन्थयो। बालकः पालको। रभसः रफसो। रम्भा लम्फा। भगवती फकवती। नियोजितम् नियोचितं । कचित् व्याकरणके नियमानुसार आनेवाले वों मेंभी ऐसा वर्णान्तर होता है। उदा.-प्रतिमा पडिमा पटिमा। दंष्ट्रा दाढा ताठा ।। ६५ ॥ अन्येषामादियुजि न ।। ६६ ।।
अन्य आचार्योंके मतानुसार, ग, ज, ड, द, ब, घ, झ, ढ, ध, भ ये वर्ण आदि होनेपर, और युज् (युजि) धातुमें, क, च, ट, त, प, ख, छ, ठ, थ, फ नहीं होते। उदा.-गती। घम्मो । जनो। झल्लरी। डमरुको। ढका। दानं। धळी । बालो। फालं। युज-नियोजितं । अन्य आचार्यों के मतानुसार, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण उनके कथित वर्णान्तरसे भिन्न वर्णान्तर दिखाई देता है)। उदा.-कती। नियोचितं ॥ ६६ ॥ शेषं प्राग्वत् ।। ६७ ॥
चूलिकापैशाचिकमें 'रो लस्तु' (३.२.६४) इत्यादि सूत्रोंमें जो कहा गया है, उसके अतिरिक्त अन्य (कार्य), प्राग्वत् यानी पहले कहे हुए पैशाचिक (भाषा) की तरह होता है। उदा.-'नो णनो' (३.२.४३) सूत्रानुसार-नयनं । फनी। इसीप्रकार अन्य (वर्णान्तर) भी ।। ६७ ।।
- तृतीय अध्याय द्वितीय पाद समाप्त -
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