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________________ हिन्दी अनुवाद- अ. ३, पा.२ २१३ ही ही वैदूषके ।। १६॥ ___ शौरसेनीमें विदूषकसे संबंधित हर्ष दिखाते समय, हीही ऐसा निपात प्रयुक्त करें। उदा.-संपण्णा मणोरहा पिअवअस्सस्स ॥ १६ ॥ हीमाणहे निर्वेदविस्मये ॥ १७ ॥ ___ शौरसेनीमें हीमाणहे ऐसा निपात निर्वेद और विस्मय दिखाते समय प्रयुक्त करें। उदा.-निवेदमें-हीमाणहे परिस्सन्ता अम्हे एदेण णिअविहिणो दुबिलसिदेण, परिश्रान्ता वयमनेन निजविधेर्दुर्विल सितेन। विस्मयमेंहीमाणहे जीवन्तवच्छा मे जणणी ॥ १७ ॥ एवार्थे एच ॥ १८ ॥ शौरसेनीमें एव अर्थमें एक ऐसा निपात प्रयुक्त करें। उदा.-मह एव्य भणन्तस्स । सो एव्व देसो ॥१८॥ हज्जे चेटयाह्वाने ।। १९ ।। __ शौरसेनीमें हले ऐसा निपात चेटीको बुलाते समय प्रयुक्त करें। उदा.-हले चदुरिए ।। १९ ।। अतो ङसेवुदोश् ॥ २० ॥ शौरसेनीमें (शब्द से अन्त्य) अकारके आगे डसि (प्रत्यय)को दु और दो ऐसे शित् आदेश होते हैं। (श् इत् होनेसे, पिछला स्वर दीर्घ होता है)। उदा.-दूगदु । दूरादो एव्व ॥ २० ॥ आत्सावामन्त्र्य इनो नः ॥ २१ ॥ शौरसेनीमें (शब्दके अन्त्य) इन्मेंसे नकारका, आमंत्रण अर्थमें होनेवाला सु आगे होनेपर, विकल्पसे आ होता है। उदा.-हो कञ्चुइआ हो तवस्सिआ। हो मणस्सिआ ।। २१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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