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________________ हिन्दी अनुवाद-अ. ३, पा.२ २१५ थेवं । (थ) स्वरके आगे होनेपरही, (ऐसा वर्णान्तर होता है, अन्यथा नहीं)। उदा.-कन्या। (थ) अस्तु [ असंयुक्त] होनेपरही ऐसा वर्णान्तर होता है [अन्यथा नहीं] । उदा.-तिथं तीर्थम् ॥ ४ ॥ इहहचोर्हस्य ॥ ५ ॥ शौरसेनीमें इह शब्दमेंसे ह का, और 'थध्व मित्थाहचौ' [२.४.५] सूत्रसे कहा हुआ जो हच प्रत्यय उसमेंसे हकारका, धकार विकल्पसे होता है। उदा.-इध इह । होध होह । परित्ताअध परित्ताअह ।। ५ ॥ भुवो भः ।। ६ ।। इस सूत्रमें ३.२.५ मेंसे] हस्य पदकी अनुवृत्ति है। शौरसेनीमें भू धातुके आदेशके रूपमें आनेवाले हकारका भकार विकल्पसे होता है। उदा.-भोदि होदि, भुवदि हुवदि हवदि ॥ ६ ॥ अन्त्यादिदेति मो णः ।।७।। शौरसेनीमें इत् और एत् यानी इकार और एकार आगे होनेपर, अन्त्य मकारके आगे णकारका आगम विकल्पसे होता है । उदा.-जुत्तं णिम जुत्तमिणं, युक्तमिदम् । सरिसंणिमं सरिसमिण, सदृशमिदम् । किं णेदं किमेदं, किमेतत् । एवं णेदं एवमेदं, एवमेतत् ।।७।। यो य्यः ।। ८ ।। शौरसेनीमें 2 के स्थानपर य्य ऐसा यह (वर्णान्तर) विकल्पसे होता है। उदा.-अय्यउत्तो। पय्याउलीकिद म्हि। सुय्यो। कय्यपरवसो। विकल्पपक्षमें-अज्जउत्तो। पज्जाउली किद म्हि । सुज्जो । कज्ज परयसो ॥८॥ पूर्वस्य पुरवः ।। ९॥ शौरसेनीमें पूर्व शब्दको पुरव ऐसा आदेश विकल्पसे होता है । उदा.अपुरवमेदं । विकल्पपक्षमें-अपुचमेदं ।। ९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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