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________________ २८० त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण फक्कस्थकः ।। १३३ ।। फक्कति को थक्क ऐसा आदेश होता है। उदा.-थक्कइ ॥ १३३ ।। श्लाघः सलाहः ॥ १३४ ॥ 'श्लाघृ कत्थने मेंसे श्लाघ् धातुको सलाह ऐसा आदेश होता है । उदा.सलाहइ ॥ १३४ ॥ थिप्पस्तृपः ।। १३५ ।। 'तृप प्रीणने मेंसे तृप् धातुको थिप्प ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.थिप्पइ ।। १३५ ॥ भियो भाविहौ ।। १३६ ।। "जिभी भये मेंसे भी धातुको भा, बिह ऐसे आदेश होते हैं ! उदा.-भाइ। भाअड । भाइअं। बिहइ । परंतु भी रूप मात्र सिद्धावस्थामेंसे है ॥ १३६ ।। भुजिरणभुज्जकम्मसमाणचमडचड्डजेमजिमान् ।। १३७ ॥ 'भुज पालनाभ्यवहारयोः'मेसे भुज धातुको अण्ण, भुज्ज, कम्म, समाण, चमड, चड्ड, जेम, जिम ऐसे आठ आदेश प्राप्त होते हैं। उदा.-अण्णइ । भुजइ। कम्मइ । समाणइ । चमडइ। चड्डइ । जेमई। जिमइ॥ १३७ ॥ जम्भेऽवेर्जम्भा ।। १३८ ॥ 'जुभी गात्रविनामे मेंसे जुभ धातुको जम्भा ऐसा आदेश होता है । (सूत्रमेंसे), अवेः का अभिप्राय वि उपसर्गके आगे यह धातु होनेपर, (ऐसा आदेश) नहीं होता । उदा.-जम्भाइ। जम्भाअइ। वि उपसर्गके आगे नहीं होता, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण वि उपसर्गके आगे इस धातुका रूप) केलिपसरो विअम्भह (ऐसा होता है) ॥ १३८॥ जुञ्जजुज्जजुप्पा युजेः ।। १३९ ॥ _ 'युजिोंगे' मेंसे युज् धातुको जुन, जुज्ज, जुप्प ऐसे तीन आदेश होते हैं। उदा.-जुञ्जइ । जुज्जइ । जुप्पइ ॥ १३९ ॥ जनो जाजम्मौ ॥ १४० ॥ 'जनी प्रादुर्भावे से जन् धातुको जा, जम्म ऐसे देश होते हैं। उदा.-जाइ । जाअइ। जम्मइ ।। १४०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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