SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण लोप होता है। उदा.-विढप्पइ। विकल्पपक्षमें-अज्जिजइ विढप्पिज्जइ 11 ८२॥ आरभ आढप्पः ।।८३॥ भावकर्मणिमें आरभ् धातुको आढप्प ऐसा आदेश विकल्पसे होता है, और यक् का लोप होता है। उदा.-आढप्पइ। विकल्पपक्षमेंआरभिजह आढपिज्जइ ।। ८३ ।। णप्पणज्जौ ज्ञः ॥ ८४ ॥ भावकर्मणिमें ज्ञा (जानाति) धातुको गप्प और णज्ज ऐसे आदेश विकल्पसे होते हैं, और यक् का लोप होता है। उदा.-णप्पइ । णज्जइ । विकल्पपक्षमें-जाणिज्जइ। मुणिज्जइ । 'ज्ञम्नोः' (१.४.३७) सूत्रानुसार (ज्ञा मेंसे ज्ञ का) ण होनेपर, णाइज्जइ (ऐसा रूप होगा)। नव पूर्व होनेचाले ज्ञा का अणाइज्जइ (ऐसा रूप होगा) ॥ ८४ ॥ सिप्पः सिचस्निहोः ॥ ८५ ॥ ___ भावकर्मणिमें सिच् (सिञ्चति) और स्निइ धातुओंको सिप्प ऐसा आदेश विकल्पसे होता है, और यक् का लोप होता है। उदा.-सिप्पड़ सिच्यते स्निह्यते वा। विकल्पपक्षमें सिंचिज्जइ । हिज्जइ ॥ ८५ ॥ चाहिप्पो व्याहुः ॥ ८६ ॥ व्याहृ (व्याहरति) धातुको भावकर्मणिमें वाहिप्प ऐसा आदेश विकल्पसे होता है, और यक् का लोप होता है। उदा.-वाहिप्पइ । विकल्पपक्षमें-बाहरिज्जइ ॥ ८६ ॥ अहेर्धेप्पः ॥ ८७ ॥ ___ भावकर्मणिमें ग्रह धातुको घेछ ऐसा आदेश विकल्पसे होता है,और यक् का लोप होता है। उदा.-घेप्पइ । विकल्पपक्षमें-हिज्जइ । ८७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy