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________________ हिन्दी अनुवाद-प्र. २, पा.४ त्विज्जाल्लिङः ॥ ३४ ॥ लिङ् यानी सप्तमी (=विध्यर्थ) का आदेश ऐसा जो 'जा', उसके आगे इकार विकल्पसे प्रयुक्त करें। उदा.-होज्जा होज्जाइ भवेत् । (यहाँ) बा का अधिकार होनेपरभी, पुनः (सूत्रमें) तु ऐसा कहा जानेसे, अगले सूत्रमें विकल्प नहीं होता ।। ३४ ॥ एकस्मिन् प्रथमादेविध्यादिषु दु सु मु ॥ ३५॥ विधि, इत्यादिमें यानी विधि, निमंत्रण, आमत्रंण, अभीष्ट, संप्रश्न और प्रार्थना, इनमें होनेवाले प्रथम, इत्यादिके यानी प्रथम, इत्यादि पुरुषोंके एकवचनमें होनेवाले प्रत्ययोंके स्थानपर यथाक्रम दु, सु और मु ऐसे आदेश होंगे। उदा.-हसउ सा। हससु तुमं । हसामु अहं । पेच्छउ पेछन पेच्छामु । (दुमेंसे) दकारका उच्चार अन्य भाषाओंके लिए है ॥३५॥ बहौ न्तु ह मो ॥ ३६॥ विधि, इत्यादि अर्थोंमें कहे हुए प्रथम, मध्यम और उत्तम पुरुषोंके बहुवचनमें होनेवाले प्रत्ययोंके स्थानपर यथाक्रम न्तु, ह और मो ऐसे आदेश होते हैं। उदा.-हसन्तु, हसन्तु हसेयुः वा । हसह, हसत हसेत वा। हसामो, हसाम हसेम वा । इसीप्रकार-तुवरन्तु तुवरह तुवरामो। इसीप्रकार सर्व धातुओंके बारेमें उदाहरण जानें ॥ ३६॥ सोस्तु हि ॥ ३७॥ विधि, इत्यादि अर्थो में सु के यानी मध्यमपुरुष एकवचनके स्थानपर हि ऐसा आदेश विकल्पसे होगा। उदा.-देहि देसु । होहि होसु ॥३७॥ लुगिज्जहीजस्विज्जेऽतः ॥ ३८ ॥ (इस सूत्रमें २.४.३७ से) सोः और तु पदोंकी अनुवृत्ति है। अत् के आगे यानी (धातुके अन्त्य) अकारके आगे सु के स्थानपर लोप, और इजहि, इनस, इब्जे ऐसे तीन आदेश विकल्पसे होते हैं। वि.प्रा.म्या....११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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