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________________ १३९ हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा. २ पहिं । अस्स । विकल्पपक्षमें-इमेसु । इमस्सि। इमेहिं । इमाहि ।. इमाम ॥ ७८॥ टाससि णः ॥ ७९ ॥ : टास् यानी तृतीया विभक्ति; अस् यानी द्वितीया विभक्ति; उन दोनों (के प्रत्यय) आगे होनेपर, इदम् के स्थानपर ण ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-णेण णेहि कणं पेच्छ । विकल्पपक्षमें-इमेण इमेहि । इम इमे ॥ ७९ ॥ इहेणं उथमः ।। ८० ॥ डि और अम् इन दो (प्रत्ययों) के साथ इदम के स्थानपर इह, इणं ऐसे ने (आदेश) क्रमसे विकल्पसे होते हैं। उदा.-डि-इह । अम्-इणं । विकल्पपक्षमें-इमस्सि इमम्मि । इमं ॥ ८ ॥ न स्थः ।। ८१॥ इदम् के आगे, 'डेस्त्थस्सिम्मि' (२.२.६३) सूत्रानुसार प्राप्त होनेवाला डि-वचनका स्थ, नहीं होता। उदा -इह । इमस्सि । इमम्मि ॥ ८१ ॥ कीबे स्वमेदमिणमिणमो ॥ ८२ ॥ . नपुंसकलिंगमें रहने वाले इदम् को, सु और अम् प्रत्ययोंके साथ, इदं, इण और इणमो ऐसे तीन आदेश होते हैं। उदा. इदं इणं इणमो चिट्ठइ पेच्छ वा ॥ ८२ ॥ किं किं ॥ ८३ ॥ (इस सूत्रमें २.२.८२ से) क्लीबे और स्वम् ये ‘पद (अध्याहृत) हैं। नपुंसकलिंगमें रहनेवाला कि.म शब्द, सु और अम प्रत्ययके साथ, किं ऐसाही होता है । उदा.-किं कुलं । किं भणसि ॥ ८३ ॥ तदिदमेतदां सेसिं तु ङसामा ।। ८४ ।। - उस् औ आम् इन प्रत्ययोंके साथ तद्, इदम् और एतद् इनके स्थानपर यथाक्रम से और सिं एस आदेश विकल्पसे होते हैं। उदा.- तद्-से गुणा, स्य गुणाः, तस्या वा । सिं उच्छाही, तेषां उत्साहः, तासां वा । इदम्-से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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