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________________ हिन्दी अनुवाद-अ.२, पा.२ ईतः सेसार् ॥ ६८ ॥ (इस सूत्रमें २.२.६७ से) उस पद (अध्याहृत) है। ईकारान्त किम्, यद् और तद् (=की, जी, ती) इनके आगे ङस् (प्रत्यय)को से और साह (ऐसे आदेश) विकल्पसे होते है । सार् में र् इत् होनेसे, (सा का) द्वित्व होता है । उदा.-कोसे । किस्सा । विकल्पपक्षमें-कीम की । कोइ । कीए । जीसे जिस्सा । (विकल्पपक्षमें)-जीअ । जीआ। जीइ। जीर ॥ तीसे । तिस्सा। (विकल्पपक्षमें)-तीभ । तीआ। तीइ । ताए ॥ ६८ ॥ डिरिआ डाहे डाला काले ॥ ६९॥ काल कहना हो तो, किम् , यद् और तद् इनके आगे डि को इना ऐसा आदेश तथा डित् आहे और आला ऐसे (दो आदेश) विकलसे होते हैं। उदा.-कइआ काहे काल।। जइआ जाहे जाटा। तइआ ताहे ताला। ताला जामन्ति गुणा जाला ते सहिअएहि घेप्पन्ति (विषमबाणलीला), तदा जायन्ते गुणाः यदा ते सहृदयगुयन्ते । विकल्पपक्षमें-कहिं कत्थ कस्सि कम्मि, इत्यादि म्हा डसेः ॥ ७० ॥ किम् , पद् और तद् इनके आगे उसि को म्हा ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-करहा । जम्हा । तम्हा । विकल्प क्षमें-काओ। जाओ। ताओ ।। ७०॥ किमो डीस डिणो ॥ ७१ ॥ किम् के आगे डांस को डित् ईस और इणो ऐसे दो आदेश होते हैं। उदा.-कीस किणो। विक ल्यपक्षमें-कम्हा । काओ ।। ७१ ॥ डो तदस्तु ॥ ७२ ॥ सद् के आगे सि को द्वित् ओ (ऐसा आदेश) विकल्पसे होता है। उदा.-तो। (विकल्पपक्षमें-) तम्हा ॥ ७२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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