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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण
इणममामा ।। ५७ ॥
(इस सूत्रमें २.२.५६ से) अना जः इन पदोंकी अनुवृत्ति है। राजन् पन्दसे संबंध होनेवाले, अन् के सहित जकारको, भम् और आम् प्रत्ययोंके साथ, इणं ऐसा आदेश विकल्पसे होता है। उदा.-राइणं पेच्छ धणं वा। विकल्पपक्षमें-राभं । राआणं ॥ ५ ॥ भिस्भ्यसाम्सुप्स्त्रीत् ।। ५८ ।।
... भिस, भ्यस्, आम और सुर ये प्रत्यय आगे होनेपर, गजन् शब्दमें, भन् से सहित जकारका ईकार विकल्पसे होता है । उदा.-भिम्-गाईहिं । भ्यस् - राइहितो । राईसुंतो। राईहि । आम्-राईणं। सुप्-गई । विकल्पपक्षमराए है । इत्यादि ।। ५८ ॥ स्ङसिटा णोणोर्डण ।। ५९ ॥
उस्, ङसि और टा-वचन प्रत्ययोंको जो णो और णा आदेश होते हैं, वे आगे होनेपर, राजन् शब्दमें अन्से सहित जकारको डित् अण् ऐसा आदेश विकल्पसे होता है । उदा.-रण्णो राइणो धणं आअओ वा। रण्णा राणा को। उस्, ङसि और टा (इन प्रत्ययोंके आदेश), ऐसा क्यों कहा है ? (कारण भन्य कुछ प्रत्ययोंके ऐसे आदेश होके भी, ऐसा नहीं होता)। उदा.-आणो चिट्ठन्त पेच्छ वा । (सूत्रमें) णोणो (णो और णा आगे होनेपर), ऐसा क्यों कहा है । (कारण ये आदेश न होनेपर, यहाँका वर्णान्तर नहीं होता)। उदा.रामस्स । रामओ । राएण ॥ ५९ ।। पुंस्थाणो राजवच्चानः ।। ६० ।।
पुलिंगमें होनेवाले (शब्दोंके अन्त्य) भन् के स्थानपर आण एसा आदेश विकल्पसे होता है । विकल्पपक्षमें, (वाङ्मयों) दिखाई देगा वैसा राजन् शब्दकी तरह कार्य होता है। आण आदेश होनेपर, सोः (२.२.१३) इत्यादि सूत्र लागू होते हैं। परंतु विकल्पपक्षमें, राजन् शब्दकी तरह, 'टो णा' (२.२.५४) 'जश्शस्ङसिङा गोश्' (२.२.५५), 'इणममामा' (२.२.५७) ये सूत्र लाय होते हैं। उदा.-अप्पाणो अप्वाणा| अप्पाणं अप्पाणे । अप्पाणेण अप्पाणेहिं। अप्पाणाओ अप्पाणासंतो | अप्पाणस्स अप्पाणाणं । अप्पाणाम्म अप्पाणेसु ।
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