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________________ १०२ मिश्रालि ।। २१ ॥ मिश्र शब्द के आगे स्वार्थे लिअ ऐसा आदेश विकल्पसे होता है । (सूत्र के लिअश्में) शू इत् होनेसे, पूर्व स्वर दीर्घ होता है । उदा - मीसालिअं मिस्सं ॥ २१ ॥ शनैसो लिडओ || २२ ॥ शनैः शब्दके आगे स्वार्थे लित् ( = नित्य) और डित होनेवाला इअं ऐसा आदेश होता है | उदा. - सणिअं ॥ २२ ॥ त्रिविक्रम - प्राकृत व्याकरण मनाको डअं च वा ॥ २३ ॥ मनाकू शब्दके आगे स्वार्थे डित् अअं और इअं ऐसे प्रत्यय विकल्प से आते हैं । उदा. - मणअं मणिअं । विकल्पपक्षमें-म - मणा ॥ २३ ॥ रो दीर्घात् ॥ २४ ॥ (इस सूत्र में १.१.२३ से) वा पदकी अनुवृत्ति है । दीघ शब्द के आगे स्त्रार्थे र विकल्पसे आता है । उदा. -दीहरं दीहं दिग्घं ॥ २४॥ डुमअडमऔल स्वः ॥ २५ ॥ भ्ह शब्दके आगे स्वार्थे द्वित् और लित् ऐसे उमअ और अमअ ऐसे ये (प्रत्यय) आते हैं । (ये प्रत्यय) लितू होने से, नित्य आते हैं । उदा -मुमअ भमआ || २५ ॥ लो वा विद्युत्पत्रपीतान्धात् ॥ २६ ॥ (विद्युत्, पत्र, पीत, अन्ध) इन शब्दों के आगे स्वार्थे ल विकल्पसे आता है | उदा. - विज्जुला विज्जू । पत्तलं पत्तं । पीअल पीअं । अंधलो अंधो ॥ २६ ॥ त्वादेः ः सः ॥ २७ ॥ 'तस्य भावस्त्वत लौ' (पा. ५.१.११९) इत्यादि (सूत्र) में कहे हुए त्व, इत्यादिके आगे स्वार्थे वही त्व, इत्यादि विकल्पसे आते हैं । उदा. - मृदुत्वेन मउत्तआइ । मृदुतया मउत्तआए | ज्येष्ठतरः जेट्टअरो । कनिष्टतरः कणिट्ठअरो ॥ २७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001735
Book TitlePrakritshabdanushasanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrivikram
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1973
Total Pages360
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size19 MB
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