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हिन्दी अनुवाद-अ. १, पा.४ ण्णेसो । जो कभी स्थितिका धारण नहीं करता, स्थिर नहीं रहता, वह थिरणेसो (यानी) चपलहृदय । (३८) सूरंगो दीप । सूर (सूर्य) की तरह जिसका अंग है वह । (३९) जोइक्खो ज्योतिष्क । (४०) पासावओ गवाक्ष यानी खिडकी । प्राकृतमें पास यानी चक्षु; वह प्राप्त कर लेता है इसलिए पासावओ। (४१) पासो पश्यति (देखता है) इति पासो (यानी) नेत्र । (४२) कोप्पो अपराध । अपना कोप वही अपराध । (४३) उम्मुहो उन्मुख । (४४) उद्दणो उद्वदन यानी जिसका मुंह ऊपर है वह। यहाँ द् ओर व इनका लोप हुआ है । (४५) पहट्ठो प्रधृष्ट । गर्वयुक्त यह अर्थ । (४६) लम्बा केश । लम्बन्ते (लटकते हैं) इति लम्बाः । (४७) वल्लीकी तरह 'वेल्ली', वल्लरीकी तरह। (४८) वेल्लरिआ। आध अ का ए और स्वार्थे क-प्रत्यय (आये है)। (४९) जण्णहरो यज्ञहरः (यानी) राक्षस । वैसा स्वभाव होनेसे। (५०) जणउत्तो ग्रामप्रधाननरः (गाँवका मुख्य पुरुष) जनपुत्रः । उस प्रकारका आचरण करता है, इसलिए । (५१) बम्हहरं (५२) आरनालं (५३) थेरोसणं कमल अर्थमें । ब्रह्मगृहम् । आरात् (यानी) दूर तथा समीप नाल होता है, इसलिए आरनालम् । यहाँ (आरात् में) दूसरे आ का अ हुआ है। स्थविरासनम् ; स्थविर (यानी) ब्रह्मदेव । (आसनमें) आ का ओ हुआ है। (५४) कलिमं कन्दो, उत्पल अर्थमें । के (जलमें) रहता है इसलिए कलिमं । यहाँ डित् इम (डिम) प्रत्यय लग गया। कन्दात् (कन्दसे) उद्दीकते (उगम पाता है) इसलिए कंदोह । 'स्तौ' (१.२.६५) नुसार ओ आगया। (५५) चंदोज (५६) रअणिद्ध कुमुद । चंद्रेण उद्दयोतते (चंद्रसे प्रकाशता है), इसलिए चंदोज । रजनिध्वजम् । (५७) घरअन्दं मुकुर यानी आयना । गृहे चन्द्रवत् उद्दयोतते (घरमें चंद्रवत् प्रकाशता है), इसलिए । (५८) आआसतलं यानी हर्म्यपृष्ठ यानी आकाशतल । (५९) आणंदवडो, नववधूका रक्तकी तरह रक्त वस्त्र, पहले रजस्वलाका रक्तसे रांजत वस्त्र, (आनन्दपट), आनंदका विषय होनेसे । (६०) सूरद्धओ दिवस । सूर्य जिसका ध्वज है वह । (६१) पल्लवि
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