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भवाओ विरत्ताणं पुरिसाणं गिहे वासो कि रोएज्ज १ । ज़इणं सासणं चिर जयउ | आइरिआ दीहं काल' जिणितु । नायपुत्ती तिथं पवट्टेउ । तुं अकज्जं न कुणेजसु, सच्चं च वइज्जहि ।
गुरूणं विणरण वैयावडिएण य नाणं पढे ।
अत्थो चिअ परिवड्ढउ, जेण गुणा पायडा हुंति ।
जर सिवं इच्छेह, तया कामेहिन्तो विरमेज्ज |
सज्जणे तुज्हे मा निन्देह | पाणीणं अप्परं नाणं दंसणं
चरितं च अत्थि, न अन्नं किं वि, तओ तेहि चिय संसारा पारं वच्चेह | सढेसु माई वीस सेज्जइ । सज्जणेहिं सद्धि विरोहं
कया वि न कुज्जा | हे ईसर ! अम्हारिसे पावे
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जणे रक्ख रक्खेहि । पाणिवहो धम्माय न खिया ।
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कासइ न वीससे । सच्चं पियं च परलोयहियं
च वएज्जा नरा ।
जइ न हुज्जइ आयरिया, को तया जाणिज्ज सत्थस्स सारं ? । होज्जा जले वि जलणो,
होजा खीरं पिगोविसाणाओ ! अमयरसो वि विसाओ, न य
पाणिवहा हवइ धम्मो || १ || वरिसंतु घणा मा वा, मरंतु रिउणो अहं निवो होज्जा । सो जिणउ परो भज्जउ, एवं चिंतणमवज्झाणं ॥ २ ॥ गुणिणो गुणेहिं विहवेहि, विहविणो होतु गविआ नाम । दोसेहि नवरि गव्वो, खलाण मग्गो चिअ अडब्बो ॥ ३ ॥ जइ वि दिवसेण पयं, घरेह पक्खेण वा सिलोगर्द्ध । उज्जोगं मा मुंह, जइ इच्छह सिक्खिरं नाणं ॥ ४ ॥ कुणउ तवं पालउ, संजम पढउ सयलसत्थाहं ।
जाव न झायइ जीवो, ताव न मुक्खो जिणो भणइ ॥ ५ ॥
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