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________________ | अध्याय 7 wwwण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण गुणस्थान सम्बन्धी प्राचीन और समकालीन स्वतन्त्र ग्रन्थ गुणस्थान सम्बन्धी विस्तृत विवरण हमें जिन ग्रन्थों में उपलब्ध हुए हैं, वे सामान्यतया कर्मसम्बन्धी विचारणा से सम्बन्धित हैं । गुणस्थानों के सम्बन्ध में सर्वप्रथम उल्लेख जीवसमास में उपलब्ध होता है । जीवसमास के पश्चात् गुणस्थान सम्बन्धी विस्तृत विवरण हमें षट्खण्डागम और पूज्यपाद देवनन्दीकृत सर्वार्थसिद्धि टीका में उपलब्ध हुए हैं । इन्हीं के समकालीन चन्द्रर्षिकृत श्वेताम्बर पंचसंग्रह और अज्ञानकृत दिगम्बर पंचसंग्रह में भी गुणस्थान सम्बन्धी विस्तृत विवरण उपलब्ध होता है । उसके पश्चात् श्वेताम्बर परम्परा में प्राचीन षट्कर्मग्रन्थों में भी गुणस्थान सम्बन्धी सूक्ष्म विवेचनाएं उपलब्ध है । इसके पश्चात् गुणस्थान सम्बन्धी विशेष चर्चा गोम्मटसार में उपलब्ध होती हैं । यद्यपि इन सभी ग्रन्थों में गुणस्थान सम्बन्ध विवरण विस्तृत और गहन है, फिर भी ये ग्रन्थ मुख्यतः कर्मसिद्धान्त से सम्बन्धित है। केवल गुणस्थान सम्बन्धी चर्चा को लेकर स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचना हमें पन्द्रहवीं शताब्दी तक उपलब्ध नहीं होती है। गुणस्थान पर स्वतन्त्र ग्रन्थों का लेखन इसके पश्चात् ही प्रारम्भ होता है। प्रस्तुत अध्याय में हमारा विवेच्य विषय पन्द्रहवीं शताब्दी के पश्चात् लिखे गए गुणस्थान सम्बन्धी स्वतन्त्र ग्रन्थों एवं परवर्ती विवेचनाओं की चर्चा से सम्बन्धित है। गुणस्थान सिद्धान्त से सम्बन्धित जो स्वतन्त्र ग्रन्थ हमें मिलते हैं, उनमें गुणस्थानक्रमारोह संस्कृतभाषा में उपलब्ध है । यह ग्रन्थ लगभग सोलहवीं शताब्दी का है । प्राकृतभाषा की दृष्टि से गुणस्थान सिद्धान्त के सम्बन्ध में जो स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध है, वह देवचन्द्रजी रचित विचारसार प्रकरण है । इसके प्रथम विभाग का नाम गुणस्थान शतक है । यह मूल ग्रन्थ प्राकृतभाषा में है, किन्तु इस पर लिखी गई संस्कृत भाषा की टीका बहुत विस्तृत और व्यापक रूप में है । अपभ्रंशभाषा में गुणस्थान सिद्धान्त पर कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखा गया हो, ऐसी कोई जानकारी हमें उपलब्ध नहीं होती है । इसके पश्चात् यदि हम प्राचीन मरूगुर्जर भाषा की दृष्टि से विचार करें, तो उसमें हमें विचारसार प्रकरण का ही टब्बा उपलब्ध होता है । साथ ही दुढारीभाषा में रचित 'गुणस्थान सिद्धान्तवचनिका' का उल्लेख मिलता है। उसके पश्चात् गुणस्थान पर जो भी स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे गए, वे सभी हिन्दी भाषा में और बीसवीं शती के उत्तरार्द्ध के हैं । आगे हम क्रमशः उनके सम्बन्ध में चर्चा करेंगे। न रत्नशेखरसूरि विरचित गुणस्थान क्रमारोह गुणस्थान पर स्वतन्त्र ग्रन्थों की रचनाओं के क्रम में प्रथम उल्लेख हमें नागपुरीयतपागच्छीय रत्नशेखरसूरि के गुणस्थानक्रमारोह का मिलता है। रत्नशेखरसूरि विरचित यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में रचित है और इसमें कुल १३६ श्लोक हैं। ४०८ गुणस्थानक्रमारोह : लेखक : रत्नशेखरसूरिजी Jain Education Interational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001733
Book TitlePrakrit evam Sanskrit Sahitya me Gunsthan ki Avadharana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshankalashreeji
PublisherRajrajendra Prakashan Trust Mohankheda MP
Publication Year2007
Total Pages566
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Soul, & Spiritual
File Size20 MB
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