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अध्याय २
जैनदर्शन का त्रिविध साधनामार्ग और
समत्वयोग
होता है कि मोक्ष लिए की जाती ह, माना गया
२.१ सम्यग्दर्शन और समत्वयोग (सम्यक्त्व) की
आधारभूमि - सम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा एवं आस्तिक्य जैनदर्शन में मोक्ष को साध्य माना गया है। उसमें सम्पूर्ण साधना मोक्ष के लिए की जाती है। अतः यहाँ यह प्रश्न उपस्थित होता है कि मोक्ष क्या है? आचार्य कुन्दकुन्द ने मोह और क्षोभ से रहित आत्मा की समत्वपूर्ण अवस्था को ही मोक्ष कहा है।' भगवतीसूत्र में जब भगवान से यह पूछा गया कि आत्मा क्या है और आत्मा का साध्य क्या है तो उन्होंने कहा कि “समत्व" ही आत्मा है और समत्व को प्राप्त कर लेना ही आत्मा का साध्य है। इससे भी यही फलित होता है कि आत्मा की समत्वपूर्ण अवस्था ही मोक्ष है। समत्व आत्मा का स्वरूप भी है और आत्मा का साध्य भी है। जैनदर्शन में साध्य और साधन में अभेद माना गया है। यही कारण है कि उसमें समत्व को आत्मा का साध्य और साधन दोनों ही कहा गया है।
जैन दार्शनिकों ने कहा है कि साधक का साध्य उससे बाहर नहीं; वह उसके अन्दर ही है। समत्वयोग की साधना के द्वारा भी जिसे पाया जाता है वह समत्व ही है। साध्य बाह्य उपलब्धि नहीं है, अपितु वह अन्दर की गहराई में अपने ही शुद्ध स्वरूप की अभिव्यक्ति है। जिस प्रकार बीज में वृक्ष बनने की क्षमता रही हुई
प्रवचनसार १/७ । भगवतीसूत्र १/६/२२८ ।
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