________________
२०
जैन दर्शन में समत्वयोग की साधना
परमशान्ति इत्यादि हैं।७४ पद्मनन्दि पंचविंशतिका में भी साम्य, स्वास्थ्य, समाधियोग, चित्तनिरोध और शुद्धोपयोग इत्यादि शब्दों को समता के समानार्थक बताया गया है। नयचक्र में समता को शुद्धभाव, वीतरागता, चारित्रधर्म और स्वभाव की आराधना कहा गया है।६ द्रव्यसंग्रह टीका में भी समता को मोक्षमार्ग का अपर नाम कहकर उसकी विशेषता प्रकट की है। योगशास्त्र में कहा गया है - समत्वयोग से व्यक्ति अन्तर्मुहूर्त में कर्मों का क्षय कर देता है। अध्यात्मसार के अनुसार समता ही मुक्ति का एकमात्र उपाय है। ज्ञानसार में बताया गया है कि जो समताकुण्ड में स्नान कर लेता है उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है।
__ वृत्ति संक्षययोग पूर्व में अध्यात्म, भावना, ध्यान और समता - इन चारों योगों का विवेचन किया गया है। इन योगों की साधना द्वारा उत्तरोत्तर आध्यात्मिक विकास में अभिवृद्धि करता हुआ साधक अन्त में वृत्तिसंक्षय नामक पंचम योग को उपलब्ध होता है। वृत्तिसंक्षय से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः वृत्तिसंक्षय ही मुख्य योग है।" 'पातंजलि योगदर्शन' में योग का लक्षण चित्तवृत्ति-निरोध किया
तत्त्वानुशासन, श्लो. ४-५ । पद्मनन्दि पंचविंशतिका, श्लो. ६४ । नयचक्र वृहद्, श्लो. ३५६ । द्रव्यसंग्रह टीका, गा. ५६ । 'प्रणिहन्ति क्षणार्धेन साम्यमालक्व्य कर्म यत् । यन्न हन्यानरस्तीव्रतपसा जन्मकोटिभिः ।। ५१ ।। रागादि-ध्वान्त-विध्वंसे कृते सामायिकांशुना। स्वस्मिन् स्वरूपं पश्यन्ति योगिनः परमात्मनः ।। ५३ ।। 'उपायः समतैवेका मुक्तेरन्यः क्रियाभरः ।। २७ ।। संत्यज्य समतामेकां स्पाद्यत्कष्ट मनुष्ठितम् ।। तदीप्सितकरं नैव बीजमुप्तमिवोषरे ।। २६ ।।' 'यः स्नात्वा समताकुण्डे हित्वा कश्नलजंमलम् ।
पुनर्न याति मालिन्यं, सोऽन्तरात्मा परः शुचिः ।। ५ ।।' ' कर्मविज्ञान भाग ८ पृ. ६८ ।
-योगशास्त्र ५।
७६
-अध्यात्मसार, अध्ययन ६ ।
-ज्ञानसार, अध्ययन १४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org