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________________ १२ जैन दर्शन में समत्वयोग की साधना भगवतीसूत्र में जब भगवान् महावीर से यह पूछा गया कि आत्मा क्या है और आत्मा का प्रयोजन या लक्ष्य क्या है ? तो उन्होंने एक भिन्न ही उत्तर दिया था। उन्होंने कहा था कि आत्मा समत्वयुक्त है और समत्व को प्राप्त करना यही आत्मा का लक्ष्य है। इस प्रकार यहाँ हम देखते हैं कि भगवान महावीर ने समत्व को ही आत्मा का स्वभाव बताया था। यदि हम यह स्वीकार करते हैं कि वस्तु का स्वभाव ही धर्म है तो हमें यह मानना होगा कि समत्व ही धर्म है; क्योंकि वह आत्मा का स्वभाव है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी विचार करें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि आत्मा का स्वभाव समत्व है; क्योंकि कोई भी व्यक्ति तनाव में जीना नहीं चाहता। समत्व ही धर्म है इस तथ्य को भगवान महावीर ने आचारांगसूत्र में भी स्पष्ट किया है। उन्होंने कहा कि “आर्यजन समभाव में धर्म कहते हैं।"५२ यदि आत्मा का स्वभाव समत्व है और समत्व की साधना ही धर्म है, तो इससे हमारा यह कथन पुष्ट होता है कि समत्व की साधना ही धर्म की आराधना है। ___डॉ. सागरमल जैन ने अपने ग्रन्थ 'जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन' में “वस्तुस्वभावोधर्मः" को एक अन्य दृष्टि से भी परिभाषित किया है। उनके अनुसार हम सब मनुष्य हैं और मनुष्य के रूप में मनुष्यत्व ही हमारा केन्द्रीय तत्त्व या स्वभाव है। चाहे एक बार हम आत्मा की सत्ता को स्वीकार करें या न करें, लेकिन हमें यह तो स्वीकार करना पड़ेगा कि एक मनुष्य के रूप में मानवता ही हमारा सच्चा धर्म है। यदि मनुष्य मनुष्य नहीं है, तो वह धार्मिक भी नहीं हो सकता। अतः मनुष्यत्व ही धार्मिकता का मुख्य आधार है, किन्तु यहाँ हमें यह विचार करना होगा कि मनुष्यत्व का समत्व और धार्मिकता से क्या सम्बन्ध है ? आधुनिक मानवतावादी विचारकों ने मनुष्य और पशु जीवन को लेकर तीन कसौटियाँ मानी हैं। उनके अनुसार पशु जीवन की अपेक्षा मनुष्य के जीवन में तीन विशेषताएँ है - ५५ 'आयाए समाइए, आया सामाइस्स अट्टे ।' ५२ 'समायाए धम्मे आरियेहिं ।' -भगवतीसूत्र १/८/३/२ । -आचारांगसूत्र १५७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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