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प.पू. गुरुवर्या सुलक्षणाश्रीजी म.सा.
हे उग्रतपस्वी! ज्ञान मनस्विनी! सहजता की हो तुम प्रतिमूर्ति... हे वर्धमान तपाराधिका!
अध्यात्म साधिका! जिनशासन की तुम हो ज्योति । ध्यान साधना से आपश्रीने गहन सागर से पाये मोती। मनोमस्तिष्क का परिमार्जन कर "भावना स्रोत' का निर्माण किया।
ओली 108 पूर्णकर, गच्छ खरतर का गौरव बढ़ाया।
हे उर्जस्विता! निष्कपटता! | सेवा भाव में तुम निरंतर अग्रसर। हे समतामूर्ति! अट्ठम तपाराधिका!
अन्तर में है वैराग्य का स्पंदन। ' हे परमवंदनीया! महातपस्वी! तुम से धन्य-धन्य है सयम उपवन ।। हे आत्म साधिका ! भक्ति रसिका!
तुम हृदय बगिया ज्यूं चंदन।। गुरुवर्या श्री के पावन पद्मों में है।
कोटि-कोटि मेरा वंदन।
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