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________________ आधुनिक मनोविज्ञान और समत्वयोग ३५१ अनुभूत्यात्मक क्षमता नहीं होती, तब तक सम्यक् समझ सम्भव नहीं होगी। समत्व की साधना के क्षेत्र में इसकी अन्तिम परिणति निर्विकल्प समाधि (शुक्लध्यान) में या आत्म-साक्षात्कार में मानी गई है। चेतना का तीसरा पक्ष संकल्पात्मक माना गया है। इसे आत्मनिर्णय की शक्ति भी कह सकते हैं। यदि आत्मा में आत्मनिर्णय की क्षमता नहीं मानी जायेगी, तो उत्तरदायित्व की व्याख्या सम्भव नहीं होगी। आत्मनिर्णय की शक्ति समत्व जीवन के लिए आवश्यक है। उसके अभाव में आत्मा असन्तुलित बन जायेगी। _ इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनदर्शन में उपयोग (चेतना) लक्षण के अर्न्तगत ज्ञानोपयोग के रूप में विवेक-क्षमता, दर्शनोपयोग के रूप में मुल्यात्मक अनुभूति की क्षमता या सम्यक् समझ और संकल्प की दष्टि से आत्मनिर्णय (संकल्प) की शक्ति को स्वीकार किया गया है। अनन्त चतुष्टय की दृष्टि से आत्मा की ये तीनों शक्तियाँ अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन और अनन्तवीर्य के अर्न्तगत विद्यमान हैं। ये आत्मा के स्वलक्षण हैं। इससे ही आत्मा को तनाव एवं द्वन्द्व से ऊपर उठने की दिशा मिलती है और इन्हीं से आत्मा समत्व में स्थिर रह सकती है। व्यक्ति अपने वासनात्मक और बौद्धिक पक्ष के मध्य होने वाले अन्तर्द्वन्द्व समाप्त करके जीवन को सन्तुलित बनाकर उसका निर्माण करता है। समत्वयोग की साधना के विकास का इतिहास यही बताता है कि जिसके द्वारा वैयक्तिक एवं सामाजिक सुख एवं शान्ति की उपलब्धि हो सके; चित्तवृत्ति बाह्य जीवन से हटकर समत्वयोग में स्थिर या अन्तर्मुखी बन सके; वही समत्वयोग की साधना है। फिर भी मानवीय जीवन में तीन प्रकार के संघर्ष समत्व को भंग करते रहते हैं : (१) मनोवृत्तियों का आन्तरिक संघर्ष : यह संघर्ष दो वासनाओं या वासना एवं बौद्धिक आदर्शों के मध्य चलता रहता है। यह चैतसिक असन्तुलन को जन्म देकर आन्तरिक शान्ति भंग करता है। आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि से हमारे इड (Id) और सुपर इगो (Super ego) में यह संघर्ष चलता रहता है। (२) व्यक्ति की आन्तरिक अभिरूचियों और बाह्य परिस्थितियों का संघर्ष : यह व्यक्ति और उसके भौतिक परिवेश, व्यक्ति और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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