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इस शोध-सामग्री को कम्प्युटराइज्ड करने में अनन्य निःस्वार्थ सेवाभावी, अगाध ज्ञानप्रेमी, देव गुरु भक्त सुश्रावकरत्न श्रीमान नवीनजी सा बुजुर्गावस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य की अस्वस्थता होते हुये भी निरंतर वैशिष्ट्य योगदान प्राप्त हुआ। आपमें जिनशासन के प्रति अपूर्व समर्पण के दर्शन हुए। आप कहा करते थे आप. दोनों के शोधग्रंथ के टाइप का सारा कार्य मैं करूंगा व सम्पूर्ण उर्जा लगाकर कार्य पूर्ण किया। धन्य है आपकी महानता को, आपके वात्सल्यसिक्त भावों के प्रति मैं हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूं।
इस ग्रंथ प्रकाशन में श्रुत सहयोगी जिन शासन समर्पित, उदारहृदयी, शान्तमूर्ति, भाग्यशाली श्रावकरत्न श्रीमान घेवरचन्दजी साकरिया की सेवाभावनाऐं प्रशंसनीय, अतुलनीय व अनुमोदनीय है। आप साधुवाद के पात्र है। श्रुत सहयोग करके आपने अपनी उदारता का परिचय दिया है एवं जिन शासन का गौरव बढाया है। एतदर्थ मैं उनकी भी हृदय से आभारी हूं।
प्रस्तुत शोधकार्य के लिए जब हमारा शाजापुर आगमन हुआ तो यहाँ पूर्व से शोधकार्य में रत साध्वी श्री दर्शनकलाश्रीजी आदि ठाणा पाँच का सानिध्य भी हमें लगभग आठ माह तक सहज ही प्राप्त हुआ। सह-अध्ययन में उनका सरल एवं सहज आत्मीय व्यवहार सदैव ही स्मरणीय रहेगा।
शाजापुर श्रीसंघ के सदस्यों का स्नेह एवं आत्मीयतायुक्त व्यवहार मेरे इस शोधकार्य का अनुपम सम्बल है। यहाँ का शान्त, स्वस्थ एवं शीतल वातावरण मेरे मन को भा गया, जो मेरे ज्ञान-ध्यान और तप-आराधना में सहायक बना। अध्ययन करने हेतु सुचारू व्यवस्था एवं आवश्यक ग्रन्थ उपलब्ध हुए। सभी धर्मानुरागियों की भावभीनी आत्मीयता सदैव सम्प्राप्त होती रही है, जो मेरे स्मृति के धरातल पर सदेव अमिट रहेगी। सभी का बहुविध सहयोग सराहनीय है।
उदारमनस्वी प्रतिभा सम्पन्न डॉ. वी.के. शर्माजी एवं उपाध्याय भूदेवजी का भी इसमें अनन्य सहयोग रहा है। उन्हें धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ। शाजापुर श्री संघ के अध्यक्ष परमात्मभक्ति के रसिक, मधुर गायक श्री लोकेन्द्रजी नारेलिया, सम्मान्य श्री ज्ञानचन्दजी, श्री मनोजजी नारेलिया आदि का भी समय-समय पर
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