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________________ आपने स्वच्छ कॉपी तैयार करने एवं लेखन कार्यों में मेरे लिए अमूल्य समय अर्पित किया। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के इस रूप को प्राप्त करने में आपका आत्मीयतापूर्ण सहयोग एवं सतत प्रेरणा रही है, जिसे न तो भुलाया जा सकता है और न ही शब्दों द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है। सहृदया, प्रखर व्याख्यात्री भगिनी श्री प.पू. प्रियलताश्रीजी जिनकी प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में सदैव प्रेरणा एवं सेवाएँ रही हैं, उसका मैं कहाँ तक वर्णन करूं। आपने अपनी अस्वस्थता के बावजूद तथा अपनी पीएच.डी. के कार्य में व्यस्त होते हुए भी अपने कार्य को छोड़कर पहले मेरे कार्य में पूर्ण सहयोग देने का कष्ट किया है। यही आपकी सरलता, उदारता, आत्मीयता एवं सहयोग समन्वय भावना का ही प्रतीक है। ___ अनन्य सेवाभावी प्रियप्रेक्षांजनाश्रीजी और अध्ययनरता प्रियश्रेयांजनाश्रीजी का भी इस शोधकार्य की पूर्णता में सतत् सहयोग रहा है। इन दोनों ने बी.ए. का अध्ययन करते हुए भी वैयावच्च आदि की अनुकूलता का सक्रियतापूर्वक पूर्ण ध्यान रखा। इन सभी गुरु बहनों के आत्मीयतापूर्ण स्नेह, सद्भावना तथा सद्प्रेरणा से इन्हीं के पावन सानिध्य में यह कार्य सम्पन्न हुआ। मैं उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ। एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् मैंने तथा प्रियलताश्रीजी म.सा. ने पीएच.डी. करने का दृढ़ निश्चय किया। एतदर्थ हमने प्रसिद्ध अन्तर्राष्ट्रीय विद्वान, भारतीय संस्कृति के संवाहक, आगमवेत्ता, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी के पूर्व निर्देशक तथा प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर के संस्थापक डॉ. सागरमलजी जैन से सम्पर्क किया। आरम्भ में डॉ. साहब से दूरभाष के माध्यम से ही विचार-विनिमय होता रहा। बाद में जयपुर आगमन के अवसर पर आपने अध्यात्म में मेरी अभिरुचि देखकर मुझे 'जैनदर्शन में समत्वयोग' विषय पर शोधकार्य करने का निर्देश दिया। उक्त विषय के निश्चित होने पर मुझे अतीव प्रसन्नता हुई। मेरे प्रबल पुण्योदय या डॉ. साहब की कृपा से विश्वभारती संस्थान, लाडनूं के द्वारा विषय की स्वीकृति भी प्रदान कर दी गई। मेरे शोधकार्य की परिपूर्णता का सम्पूर्ण श्रेय प्रख्यात मनीषी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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