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________________ गया है। गीता में हमें विविध प्रकार के योगों की चर्चा मिलती है। उसमें योग की परिभाषा देते हुए 'समत्वयोग उच्यते' कहकर समत्व को ही साध्ययोग माना गया है। ज्ञान, कर्म और भक्ति - ये सभी समत्व की उपलब्धि के साधन हैं। समत्वयोग सभी योगों का साध्य है। समत्वयोग के इस महत्त्व को दृष्टि मे रखकर ही हमने प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में 'जैनदर्शन में समत्वयोग : एक समीक्षात्मक अध्ययन' प्रस्तुत किया है। यदि आत्मा का स्वरूप समत्व है तो फिर हमारे जीवन में विक्षोभ और तनाव क्यों उत्पन्न होते हैं? वे क्यों व्यक्ति के चित्त के समत्व को विचलित करते हैं। जैनदर्शन में इन कारणों को राग-द्वेष या कषाय के रूप में वर्णित किया गया है। समत्वयोग की साधना वस्तुतः राग-द्वेष से मुक्ति की साधना है। जब राग-द्वेष का कोहरा हटेगा, तभी विराग का अभ्युदय होगा एवं वीतरागता का पुष्प प्रस्फुटित होगा। जैन परम्परा में मोक्षमार्ग के रूप में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की चर्चा मिलती है। वस्तुतः जब दर्शन, ज्ञान और चारित्र हमें समत्व की दिशा में ले आते हैं तभी वे सम्यक् माने जाते हैं। प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में हमने यह बताया है कि जीवन में राग-द्वेष तथा इच्छाओं और आकांक्षाओं से मुक्ति की साधना ही समत्व की साधना है। सामाजिक जीवन में वही अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह का रूप ले लेती है। क्योंकि हिंसा, आग्रह और संग्रह की वृत्तियाँ सामाजिक समत्व को भंग करती हैं। अतः हमारे वैयक्तिक या सामाजिक जीवन में समभाव बना रहे, इस चर्चा को ही हमने प्रस्तुत शोध में रेखांकित किया है। व्यक्ति का कर्तव्य राग-द्वेष तथा आकांक्षाओंओं से ऊपर उठकर अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह की साधना करना है। आज सम्पूर्ण मानव समाज विक्षोभों और तनावों से ग्रस्त है। उसे इनसे मुक्त करने का एकमात्र उपाय समत्वयोग ही है। हम यह भी देखते हैं कि इस समत्वयोग की साधना का प्रतिपादन न केवल जैनदर्शन में ही मिलता है, अपितु जैन धर्म की सहवर्ती हिन्दू और बौद्ध परम्परा में भी मिलता है। प्रस्तुत अध्ययन में समत्वयोग के परिप्रेक्ष्य में इन साधना पद्धतियों का भी अध्ययन किया गया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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