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________________ जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना में किये जानेवाले विभिन्न कर्मों के वर्गीकरण के आधार पर किसी वर्ग को श्रेष्ठ या हीन नहीं माना जा सकता है। का आधार व्यक्ति के सद्गुण या सदाचार ही है । श्रेष्ठता या हीनता २३४ जैन धर्म में वर्ण व्यवस्था : १. जन्म के आधार पर स्वीकार नहीं की गई, उसका आधार कर्म हैं । २. अतः कर्म के आधार पर वर्ण परिवर्तनीय है । ३. पुनः श्रेष्ठत्व का आधार वर्ण या व्यवसाय नहीं, सदाचरण है। हिन्दू स्मृतियों में भी कहा गया है : “ जन्मना जायते शुद्रः कर्मणा जायते विपुः” । बौद्ध धर्म में तो वैदिक वर्ण व्यवस्था का क्रम भी बदल दिया गया है क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, और शुद्र । बौद्ध धर्म के अनुसार भी वर्ण व्यवस्था जन्मना नहीं, कर्मणा है । कर्मों से ही मनुष्य ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या क्षुद्र बनता है; न कि उन कुलों में जन्म लेने मात्र से । बौद्धागमों में जातिवाद के खण्डन के अनेक प्रसंग मिलते हैं। लेकिन उस सबका मूलाशय यही है कि जाति या वर्ण आचरण के आधार पर बनता है, न कि जन्म के आधार पर। गीता में वर्ण व्यवस्था जन्म से नहीं, वरन् कर्म पर ही आधारित है। श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि चातुर्वण्य व्यवस्था का निर्माण गुण और कर्म के आधार पर ही किया गया है युधिष्ठिर कहते हैं कि 'तत्त्वज्ञानियों की दृष्टि में केवल आचरण ही जाति का निर्धारक तत्त्व है ।' I इस प्रकार डॉ. सागरमल जैन ने 'जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन' भाग २ पृ. १७७-१७८ में समान रूप से वर्ण व्यवस्था को कर्म के आधार पर स्वीकार किया है । इस सम्बन्ध में आधार भूत मान्यताएँ निम्न हैं : १. वर्ण का आधार जन्म से नहीं, वरन् गुण और कर्म है । २. वर्ण परिवर्तनीय है । व्यक्ति अपने स्वभाव, आचरण और कर्म में परिवर्तन कर वर्ण परिवर्तित कर सकता है । ३. वर्ण का सम्बन्ध सामाजिक कर्त्तव्यों से है । कोई भी सामाजिक कर्त्तव्य या व्यवसाय अपने आप में श्रेष्ठ या हीन नहीं है, चरन् उसकी कर्त्तव्य निष्ठा या सदाचरण पर निर्भर है । सभी वर्ण के लोगों को आध्यात्मिक विकास का अधिकार समान रूप से प्राप्त है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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